ऐसा परिवार साक्षात स्वर्ग है, जानें कैसी Family में रहते हैं आप
punjabkesari.in Friday, Mar 03, 2023 - 10:03 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Happy family: धरती पर स्वर्ग तब उतर आता है, जब किसी परिवार में खुशहाली छाई रहती है। जहां आपस में स्नेह है, प्रेम, अपनत्व, रूठना-मनाना, समर्पण और समझ है तो समझना स्वर्ग और कहीं नहीं, यहीं है। पर जहां क्लेश है, टूटन-फूटन है, वैमनस्य है, वैर-विरोध है तो वह परिवार साक्षात नरक है। रिश्ते बनाना आसान होता है पर रिश्तों को निभाना बहुत मुश्किल होता है। पहले संयुक्त परिवार होते थे जहां आपस में आनंद हिलोरे लेता था, पर अब सब बिखर गया है इसलिए प्रेम भी बिखर गया है। आज के युग में पढ़ाई बढ़ गई है, पर गढ़ाई लुप्त हो गई है।
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परिवार वहां टूटता है जहां ‘ही’ का प्रयोग होता है परंतु जहां ‘भी’ का प्रयोग होता है वहां प्रेम की मधुर सुगंध अपनी महक देती है।
ज्योतिष में 9 ग्रहों का वर्णन आता है पर इन सभी ग्रहों पर दसवां ग्रह भारी पड़ता है और दसवां ग्रह है ‘आग्रह’। परिवार के बिखराव का मुख्य कारण ही है ‘आग्रह’।
ये शब्द मुनि श्री अर्हत्त कुमार जी ने सिरकाली में ‘टूटते रिश्ते बिखरते परिवार’ पर व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, ‘‘परिवार में अहम रिश्ता होता है पति-पत्नी का। यह रिश्ता सबसे कीमती होता है इसलिए अगर पति पतंग बन जाए तो पत्नी उसकी डोर बन जाए। पति अंगार बन जाए तो पत्नी गंगा की धार बन जाए।
रिश्तो में एक रूठने में एक्सपर्ट हो तो दूसरा मनाने में परफैक्ट होता है। आप बस परफैक्ट बनिए, रिश्ते अपने आप सुनहरे बनेंगे। शंका की खटास रिश्तों के दूध को फाड़ देती है। रिश्तों को मधुर बनाना है तो ‘रुद्गह्ल त्रश' (मुद्दों को छोडऩा) करना सीखे, बात को आई-गई करना आ जाए तो दुनिया की कोई शक्ति परिवार को नहीं तोड़ सकती।
सकारात्मकता रखें, परिवार में तीखी जुबान के कैक्टस नहीं बल्कि अपने मधुर व्यवहार के गुलाब उगाएं जिससे पड़ोसी का दिल भी महक उठे क्योंकि परिवार में कायदा नहीं, व्यवस्था होती है, सूचना नहीं समझ होती है, सम्पर्क नहीं, संबंध होते हैं।
शीशा गलती से टूटता है पर रिश्ता गलतफहमी से टूटता है। हमें परिवार के रिश्तों को स्वर्णिम बनाना है तो हम एक दूसरे की ‘केयर’ करें... मिलजुल कर ‘प्रेयर’ करें और विचारों को ‘शेयर’ करें...!
सहयोगी संत मुनि भरत कुमार जी ने कहा :
‘हमारा परिवार, सुख-शांति का आधार’
‘रिश्तों की डोर, न हो कमजोर’
‘इस बात पर है, हमारा पूरा जोर’
‘मन व क्रिया से, मुड़ता है इस ओर’
‘आपके जीवन में, उदित हो सुनहरी भोर’
‘सहिष्णुता व अनेकांत, जिनके हाथों के डोर’
‘प्रेम शांति का, हमेशा चले दौर।’
‘रिश्तों की डोर, न हो कमजोर।’
बाल संत जयदीप कुमार जी ने कहा :
जिस परिवार में शान्ति एवं प्रेम का साम्राज्य होता है, वह परिवार सबसे सुखी परिवार होता है। जहां छोटों पर वात्सल्य की अमृत वर्षा होती है और बड़ों का सम्मान देव तुल्य होता है वह परिवार साक्षात स्वर्ग है।