Vyasa purnima: धर्म की रक्षा के लिए हुआ था भगवान विष्णु के 9वें अवतार का जन्म
punjabkesari.in Friday, Jul 23, 2021 - 07:37 AM (IST)
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Vyasa purnima: गुरु को गोविंद से भी बड़ा कहा गया है। गुरु की पूजा कर हम अपने अत्यल्प ‘स्व’ को उसकी सर्वसमर्थ सत्ता में समर्पित अथवा विसर्जित कर देते हैं। पुष्पदंत विरचित ‘शिवमहिम्रस्तोत्रम’ के अनुसार गुरु से बढ़कर कोई तत्व नहीं है, ‘नास्ति तत्वं गुरो: परम्।’
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को भगवान विष्णु के 9वें अवतार भगवान वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा कहते हैं। यह गुरु पूजा करने का दिवस है, गुरु के प्रति आस्था, श्रद्धा और समर्पण का महापर्व है। गुरु की पूजा करके हम उस ‘साक्षात परब्रह्म’ का ही पूजन करते हैं जो सर्वेश्वर है। गुरु स्वयं ईश्वर है, परम सत्य है। वह हमारा रक्षक है, मार्गद्रष्टा है।
भगवान वेदव्यास का जन्म एक द्वीप पर होने से ये ‘द्वैपायन’ और रंग काला होने के कारण ‘कृष्ण’ अर्थात कृष्णद्वैपायन कहलाए। इनका अवतार धर्म की रक्षा के लिए हुआ। इन्होंने अद्भुत शाश्वत धार्मिक साहित्य की रचना पर मानव जाति को ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखलाया। वस्तुत: हमारा सम्पूर्ण साहित्य ही ‘व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्व’ कहा गया है।
ऋषि वेदव्यास महाभारत के रचयिता हैं। कहते हैं कि प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों की प्रस्तुति एवं उनका प्रचार-प्रसार करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार इस श्रृंखला में अट्ठाइस वेदव्यास हुए जिनमें से कुछ मुख्य ये हैं- सूर्य, मृत्यु, इंद्र, धनंजय, कृष्ण, द्वैपायन, अश्वत्थामा आदि।
इस प्रकार अट्ठाइस बार वेदों का विभाजन किया गया और इन्होंने ही अठारह पुराणों की रचना की। सृष्टि के प्रारंभ में वेद अविभक्त तथा एक लाख मंत्र वाला था। अठाइसवें द्वापर में वेदव्यास ने अपने पूर्व के वेदव्यासों के अनुरूप ही चार भागों में संयुक्त वेद को विभक्त किया। इनके अध्ययन के लिए चार विद्वान शिष्यों को दीक्षित किया गया एवं पेल को ऋग्वेद, वेश्म्पायन को यजुर्वेद, जैमिनी को सामवेद तथा सुमन्तु को अथर्ववेद का ज्ञाता बनाया।
शास्त्रों के अनुसार ऋषि त्रिकालदर्शी थे और इन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर जान लिया था कि कलयुग में धर्म क्षीण हो जाएगा धर्म क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्त्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएगा। एक विशाल वेद का संगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ्य से बाहर हो जाएगा। इसीलिए वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित कर दिया ताकि कम बुद्धि एवं कम स्मरण शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। वेदों का विभाजन करने के कारण ही इन्हें वेदव्यास कहा गया।