Vidisha: प्रसिद्ध मंदिरों, शिलालेख और खंडहरों को देखना है तो करें विदिशा की सैर
punjabkesari.in Saturday, Apr 20, 2024 - 07:21 AM (IST)
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Places to Visit in Vidisha: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 56 किलोमीटर दूर स्थित विदिशा एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। कहा जाता है कि लगभग 2600 साल पहले यह जगह व्यापार का प्रमुख केन्द्र थी। अगर इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो 1000 साल पहले सम्राट अशोक विदिशा के गवर्नर हुआ करते थे। बता दें, विदिशा में ही शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘अशोक’ की शूटिंग हुई थी।
भारत के प्राचीन नगरों में शुमार यह स्थान हिन्दी तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रूप में जाना जाता है। आज भी इस नगर में जीर्ण अवस्था में बिखरी पड़ी कई खंडहरनुमा इमारतें इस क्षेत्र की ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि को बताती है। अगर बात विदिशा के पर्यटन की करें तो यह इतिहास प्रेमियों के लिए एकदम उपयुक्त स्थान है।
यहां पर्यटक कई प्रसिद्ध मूर्तियां, शिलालेख, खंडहर और पुरातात्विक महत्व के स्थलों को देख सकते हैं। इसके अलावा यहां कुछ महत्वपूर्ण मंदिरों में गिरधारी मंदिर, उदयेश्वर मंदिर, दशावतार मंदिर, मालादेवी मंदिर के साथ प्रमुख तीर्थ स्थल बीजामंडल भी स्थित है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
नीलकंठेश्वर शिव मंदिर : सूर्य की किरणें करती हैं शिवलिंग का अभिषेक
परमार राजा उदयादित्य द्वारा निर्मित नीलकंठेश्वर शिव मंदिर विदिशा जिले के गंजबासौदा तहसील के उदयपुर ग्राम में स्थित है। आज भी सूर्य की पहली किरण महादेव जी पर अवतरित होती है। मंदिर की प्रत्येक कला में भिन्नता है, कोई भी कला एक जैसी नहीं है।
यहां हर महाशिवरात्रि पर पांच दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है। मुख्य मंदिर मध्य में निर्मित किया गया है और उसमें प्रवेश के 3 द्वार हैं। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं, जिसमें सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही उगते हुए सूरज की किरणें पड़ती हैं।
मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का आकार इस प्रकार है :
5 फुट 1 इंच शिवलिंग की गोलाई,
6 फुट 7 इंच जमीन से ऊंचाई,
3 फुट 3 इंच जिलेहरी से ऊपर,
22 फुट 4 इंच चौकोर जिलेहरी।
शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ा है जो केवल शिवरात्रि के दिन ही उतारा जाता है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना प्रतिदिन मंदिर में की जाती है। शिवलिंग का निर्माण भोपाल के पास भोजपुर के शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग जैसा है।
मंदिर की बाहरी दीवार पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां पत्थरों पर उकेरी गई हैं। अधिकांश मूर्तियां भगवान शिव के विभिन्न रूपों से सुसज्जित हैं। महत्वपूर्ण मूर्ति शिल्प में भगवान गणेश, भगवान शिव की नृत्य में रत नटराज, महिषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय आदि की मूर्तियां हैं। इनके अतिरिक्त स्त्री सौंदर्य को प्रदर्शित करती मूर्तियां भी यहां स्थापित हैं।
11 शताब्दी का गडरमल मंदिर
विदिशा के प्रमुख आकर्षणों में से एक गडरमल मंदिर को विजय मंदिर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर में परमार काल के एक बड़े मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं।
इसकी आधी अधूरी बनावट और आधारशिला को देखकर यह समझा जा सकता है कि इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया। मंदिर के पास ही एक मस्जिद है जिसे आलमगीर मस्जिद कहा जाता है।
माना जाता है कि इसका निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में किया गया था। इस परिसर में सातवीं शताब्दी की एक सीढ़ी वाली बावड़ी भी है, जो इस मंदिर को और भी समृद्ध बना देती है। बावड़ी में दो लंबे स्तंभ हैं, जिन पर श्री कृष्ण के जीवन दृश्यों का वर्णन किया गया है। माना जाता है श्री कृष्ण के ये जीवन दृश्य मध्य भारत की प्रारम्भिक कला की निशानी हैं।
सोला खंबी मंदिर
बदोह कस्बे के कुरवाई में स्थित सोला खंबी मंदिर का संबंध गुप्त काल से है। एक स्थानीय झील के उत्तरी छोर पर स्थित यह मंदिर बेहद खूबसूरत दिखता है। इस मंदिर का नाम इसके 16 खम्भों के कारण मिला है। करीब 8 वर्ग मीटर में फैला यह मंदिर 1.5 मीटर के आधार पर टिका है।
प्रमुख जैन तीर्थ स्थल भद्दिलपुर
भद्दिलपुर जैनियों के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ की पावन जन्मभूमि के कारण जैनियों का प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल है।
उदयगिरि की गुफाएं
विदिशा से 6 किलोमीटर दूर बेतवा और वैस नदी के बीच में उदयगिरी की गुफाएं बेहद जटिल नक्काशी के लिए जानी जाती हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा सुरक्षित इन गुफाओं में कई बौद्ध अवशेष भी पाए गए हैं और इन गुफाओं में की गई नक्काशी और अभिलेख का खास ऐतिहासिक महत्व है।
इस गुफा में पाए जाने वाली अधिकांश मूर्तियां भगवान शिव और उनके अवतार को समर्पित हैं। गुफा में भगवान विष्णु की लेटी मुद्रा में एक प्रतिमा भी है, जिसे जरूर देखना चाहिए। पत्थरों को काट कर बनाई ये गुफाएं गुप्त काल के कारीगरों के कौशल और कल्पना का जीता-जागता उदाहरण हैं।
लोहंगी पीर
चट्टानों से निर्मित लोहंगी पीर पूरे विदिशा में फैला हुआ है। चट्टान की यह संरचना 7 मीटर ऊंची है और इसकी चोटी चपटी है, जिसका व्यास करीब 10 मीटर है। यहां लोहंगी पीर के नाम पर एक कब्र भी है। इस पहाड़ी चट्टान से विदिशा के चारों को देखा जा सकता है। इस जगह को घूमते हुए पर्यटक ईसा पूर्व पहली शताब्दी का एक तालाब भी देख सकते हैं।
गरुण स्तंभ
विदिशा रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर दूर स्थित गरुण स्तंभ भगवान वासुदेव को समर्पित है, जिसका निर्माण ‘हेलियोडोरस’ ने कराया था। खम्बे पर दर्ज अभिलेखों की मानें तो ‘हेलियोडोरस’ ऐसे पहले विदेशी थे जो भगवान विष्णु की पूजा करते थे। स्थानीय लोगों के बीच यह खंबा बाबा के नाम से जाना जाता है। इस स्तंभ की चोटी पर गरुड़ की एक मूर्ति बनी हुई है। हल्के भूरे रंग के इस स्तंभ के तीन भाग हैं- फलकित छड़, बेल कैपिटल और गरुड़ की मूर्ति जो एक क्षतिग्रस्त एबेकस पर स्थित है।