खाना खाने से पहले करें ये काम, शाकाहारी भोजन में भी वास करते हैं पाप

punjabkesari.in Wednesday, Nov 09, 2016 - 11:19 AM (IST)

कुत्ते और बिल्लियां दूसरे जानवरों को अपने भोजन के लिए मारते हैं। उन्हें अपने इस कार्य के लिए कोई पाप नहीं लगता परन्तु मनुष्य अपने अनियंत्रित स्वाद के लिए ऐसा करता है तो वह प्रकृति के नियमों का उल्लघंन करता है। मनुष्य के जीवन के स्तर को हम जानवरों पर लागू नहीं कर सकते। शेर न तो चावल रोटी खाता है और न ही गाय का दूध पीता है। भोजन के रूप में उसके लिए जानवरों का मांस है। कुछ जानवर और पक्षी मांसाहारी और कुछ शाकाहारी होते हैं। सभी भगवान के बनाए नियमों का पालन करते है, और कोई भी जानवर ,पक्षी प्रकृति के नियमों का उल्लघंन नहीं करते तो उनके लिए पाप का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके लिए वेदों में कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं । एकमात्र यह मनुष्य जीवन ही कर्तव्यमय जीवन है। 


यह सोचना गलत होगा कि एकमात्र शाकाहारी होने से हम प्रकृति के नियमों का उल्लघंन नहीं कर रहे इस पाप से बच जाएंगे क्योंकि सब्जियों मे भी प्राण होते हैं। यह प्रकृति का नियम है की हर जीवित प्राणी एक दूसरे पर आश्रित होते हैं। मनुष्य जीवन का एकमात्र कर्तव्य भगवान् को जानना है तो किसी को एकमात्र शाकाहारी होने पर ही गर्वित नहीं होना चाहिए। जानवरों की चेतना इतनी विकसित नहीं है कि वह भगवान को जान सके लेकिन मनुष्य पूर्ण रूप से सक्षम है कि वैदिक ग्रन्थो से शिक्षा लें और समझें की प्रकृति के नियम किस प्रकार कार्य करते हैं और वेदों के निर्देशों को समझ कर उसका लाभ लें। 


अगर वे मनुष्य वैदिक निर्देशों का सही ढ़ंग से पालन नहीं करता तो उसका जीवन दुर्भाग्यमय हो सकता है इसलिए मनुष्य जीवन का एक मात्र कर्तव्य है कि वो भगवान को समझे और उनका भक्त बने। उसे सर्वस्व भगवान् को अर्पित करना चाहिए। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह  भगवान को भोग अर्पित करे और प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करे। 


श्रीमद भगवद्गीता (9.26)  में भगवान् श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि कोई भी प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र , पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं। तो इसका अर्थ है कि मनुष्य को एक मात्र शुद्ध शाकाहारी न बन के अपितु भगवान का भक्त बनना चाहिए और भगवान को अर्पित किये भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। 


भगवद गीता (3.13) में लिखा गया है कि भगवान् के भक्त सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि वे यज्ञ में अर्पित किये भोजन (प्रसाद) को ही खाते हैं। अन्य लोग, जो अपनी इन्द्रियसुख के लिए भोजन बनाते हैं वे निश्चित रूप से पाप खाते हैं। पाप का मूल कारण प्रकृति के नियमों का स्वेच्छा पूर्वक उल्लंघन हैं। प्रकृति के नियमों का पालन न करना मनुष्य के पतन का कारण बनता है। इसके विपरीत जो प्रकृति के नियमों को जानते हैं वो अनावश्यक मोह से ग्रसित नहीं होते और अपने शाश्वत घर अर्थात भगवद धाम जाने के लिए योग्य हो जाते हैं।

 
- श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com


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