तीन महीने इन क्रियाओं को करने से पाया जा सकता है वेदों का ज्ञान
punjabkesari.in Wednesday, Nov 27, 2024 - 12:25 PM (IST)
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Vedic Kriya Yoga: यह सृष्टि अपने आप में संपूर्ण है, जो कि सकारात्मक-नकारात्मक, काला-सफेद, अंधकार-प्रकाश, ध्वनि-मौन आदि एक दूसरे के विपरीत पहलुओं का सम्मिश्रण है I अंधकार के बिना प्रकाश क्या है और मौन बिना ध्वनि का क्या अर्थ ?
एक-दूसरे का विपरीत ही पूर्ण के अर्थ को स्पष्ट करता है। वैदिक ऋषियों ने इस सृष्टि के गूढ़ रहस्यों का अनावरण कर विश्व को ‘पूर्ण’ का ज्ञान दिया है। पूर्ण अर्थात शून्य और शून्य का तात्पर्य समझा जाता है कुछ भी नहीं I यही शून्य आधुनिक अंक गणित, रेखा गणित व संख्या प्रणाली का आधार है। यह जग-जाहिर है कि संख्या प्रणाली का ज्ञान जिसे अब हम अरबिक नुमेरल्स के नाम से जानते हैं। सिंध के इस पार से ही अरब देशों की ओर गया है, जहां से गोरों ने इसे सीखकर वापस हमें ही निर्यात कर दिया।
पाइथागोरस रेखागणित जानने के लिए समोस से गंगा किनारे आया। ‘पाइथागोरस थ्योरम जो सभी जगह स्वीकृत तथा लागू है, पाइथागोरस के जन्म से करीब हज़ार वर्ष पूर्व ही शुल्बसूत्र में उपस्थित है। वह क्या चीज़ है जिसने वैदिक ज्ञान को सभी आधुनिक विज्ञानों का आधार बना दिया ?
वैदिक संतों के ज्ञान का स्रोत क्या था ? इसका जवाब है गुरु कृपा जिसने भौतिक विज्ञान, संगीत, नृत्य, नाटक, युद्ध कला, काव्य कला आदि सम्पूर्ण वैदिक दर्शनशास्त्र अर्थात तत्व विज्ञान को प्रकट कर दिया I हालांकि आधुनिक मनुष्य को वैदिक दृष्टाओं की तुलना में स्वयं को निम्न समझने की जरूरत नहीं है क्योंकि सृष्टि और ज्ञान, दोनों ही असीमित हैं I
आज का मानव भी कुछ सही योगिक क्रियों के अभ्यास द्वारा वेदों के ज्ञान और उससे भी परे बहुत कुछ हासिल कर सकता है। यहां तक कि सनातन क्रिया की बुनियादी क्रियाओं के तीन महीने के अभ्यास से ही, बिना किसी आत्म या स्वतः सुझाव के साधक ज्यामितीय आकृतियां जैसे कि त्रिकोण, वर्गों, पिरामिड, प्रिज्म, आदि देख पाने में सक्षम हैं। अगर वह वर्तमान समय में उन्हें देख सकते हैं तो हम केवल प्राचीन ऋषियों की चेतना के स्तर की कल्पना मात्र ही कर सकते हैं।
जिन्होंने सभी विज्ञानों का ज्ञान दिया, जहां से अरस्तू और पाइथागोरस ने भी प्राप्त किया I ध्यान आश्रम में विभिन्न क्रियाओं के अभ्यास द्वारा इस सृष्टि के छिपे-अनछिपे रहस्यों का अनुभव किया जा सकता है।
एक प्रयोग के रूप में पूर्णिमा की रात अपने आज्ञा चक्र से चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध बनायें और आधे घंटे बाद मन को स्थिर करते हुए शवासन में लेट जाएं।
अश्विनी गुरुजी