Vat Savitri Vrat: वट सावित्री के दिन इस गुप्त वास्तु उपाय से वैवाहिक ऊर्जा को करें रिचार्ज

punjabkesari.in Sunday, May 25, 2025 - 12:01 PM (IST)

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Vat Savitri Vrat 2025: ज्येष्ठ महीने में मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत वैवाहिक महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस व्रत का उद्देश्य सुखी और खुशहाल दांपत्य का आशीर्वाद प्राप्त करना है। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को है। इस व्रत में मूल रुप से बरगद के पेड़ की पूजा होती है। वट सावित्री व्रत के दिन बरगद पूजा के कुछ वास्तु नियम भी हैं। जिन्हें फॉलो करने से पति की उम्र लंबी होती है और सुखमय वैवाहिक जीवन का आनंद भोगा जा सकता है।

Vat Savitri Puja
बरगद के पेड़ के चारों ओर घड़ी की दिशा में ही परिक्रमा करें (Clockwise Only) क्योंकि बरगद के पेड़ की चारों दिशाओं में अलग-अलग देवत्व शक्तियां मानी जाती हैं पूर्व में ब्रह्मा, दक्षिण में विष्णु,पश्चिम में महेश और उत्तर में शक्ति का वास माना गया है। घड़ी की दिशा में परिक्रमा करने से इन सभी शक्तियों को संतुलित ढंग से सम्मान मिलता है और सकारात्मक ऊर्जा जागृत होती है।

परिक्रमा करते समय हमेशा दाहिना कंधा पेड़ की ओर रखें, यह शरीर की ऊर्जा प्रवाह की दिशा (प्राण वायु और अपान वायु) के साथ संतुलन बनाता है। उल्टी दिशा में करने से चक्रों में बाधा आ सकती है।

Vat Savitri Puja
बरगद की छाया में खड़े होकर पूजा न करें। बरगद की छाया को गुरु छाया कहा गया है। यह केवल बैठने या ध्यान करने के लिए है, पूजा के लिए नहीं। पूजा सदैव बरगद की छाया से बाहर रहकर करनी चाहिए, इससे देवता और पितृ दोनों के आशीर्वाद अलग-अलग रूप में ग्रहण होते हैं।

सुबह 7 बजे से पहले या सूर्यास्त के बाद वट पूजा न करें। बरगद का पेड़ दिन में ऑक्सीजन और ऊर्जा देता है लेकिन भोर से पहले और शाम को इसके चारों ओर सूक्ष्म पितृ ऊर्जा सक्रिय होती है। यदि व्रती महिला इस समय के दौरान पूजा करती है तो मानसिक थकावट और असंतुलन की संभावना रहती है।

Vat Savitri Puja
पूजा के समय लाल रंग की चीज़ें उत्तर दिशा में न रखें। उत्तर दिशा कुबेर दिशा है और लाल रंग मंगल ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल ऊर्जा और उत्तर दिशा का टकराव धन हानि और वैवाहिक तनाव का सूचक हो सकता है इसलिए पूजा की थाली, चुनरी, सिंदूर आदि हमेशा पूर्व या दक्षिण-पूर्व की ओर रखें।

मिट्टी के दीपक को ज़मीन पर न रखें, लकड़ी के पाटे पर रखें। दीपक को धरती पर रखने से उसकी अग्नि ऊर्जा नीचे की ओर खिंच जाती है, जिससे उसका दिव्य प्रभाव कम हो जाता है। लकड़ी ऊर्जा का संवाहक होती है इसलिए लकड़ी पर रखने से दीपक की आभा ऊपर की ओर जाती है। जो आपकी प्रार्थना को ब्रह्मांड तक पहुंचाती है।

Vat Savitri Puja
वट वृक्ष की पूजा करते समय मौन रहने की कोशिश करें। वट वृक्ष को जीवित गुरु माना गया है। उसके सामने मौन रहने से आपकी मन की प्रतिध्वनि वृक्ष में समाहित होकर सकारात्मक रूप में लौटती है। ज़्यादा बोलने से मानसिक शक्ति बिखरती है।

अगर शादी के कई साल हो चुके हैं तो व्रत के साथ विवाह की पुनः स्मृति भी करें। वट सावित्री व्रत का उद्देश्य केवल पति की लंबी उम्र नहीं बल्कि वैवाहिक ऊर्जा को रीचार्ज करना भी है। अपने विवाह की कोई स्मृति (फोटो, अंगूठी, पल्लू) पूजा थाली में रखें। यह वास्तु शास्त्र में संस्कार जागरण कहा गया है, जो दाम्पत्य प्रेम को पुनः सक्रिय करता है।

Vat Savitri Puja
पूजा के बाद पत्ते न तोड़ें, केवल गिरे हुए पत्ते चुनें। वास्तु के अनुसार, किसी भी देववृक्ष की पूजा के बाद उसकी शाखा या पत्तियों को तोड़ना ऊर्जा चक्र को तोड़ना माना जाता है। गिरे हुए पत्ते पहले से पृथ्वी को समर्पित हो चुके होते हैं। इन्हें लेकर घर में रखने से पुण्य ही मिलता है, पाप नहीं।

बरगद के पेड़ की जड़ में तांबे का सिक्का छुपाकर दबाएं। यह एक गुप्त वास्तु उपाय है जो पारिवारिक समृद्धि और वैवाहिक स्थायित्व को मजबूत करता है। तांबा शुक्र और मंगल दोनों का प्रतिनिधि है और जड़ में दबाने से ये ऊर्जा ज़मीन से जुड़कर घर के भीतर स्थिर होती है।

Vat Savitri Puja

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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