रामायण: श्रीराम ने बालू से बनाए भगवान, आज पूजता है सारा ज़हान

punjabkesari.in Monday, Feb 22, 2021 - 07:44 PM (IST)

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Ramayana: महाराष्ट्र की पहचान वैसे तो भगवान शिव तथा पार्वती के पुत्र भगवान गणेश की आराधना के लिए विशेष रूप से मानी जाती है लेकिन महाराष्ट्र की भूमि पर गणपति बप्पा के पिता यानी भगवान शंकर की आराधना अति प्राचीन काल से होती आ रही है। महाराष्ट्र की पावन भूमि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का न केवल आगमन हुआ, बल्कि उन्होंने महाराष्ट्र की इस पावन भूमि पर शिवलिंग की पूजा भी की है इसलिए भगवान शंकर की आराधना में महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण स्थान है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव जहां-जहां प्रकट हुए, उन स्थानों को द्वादश ज्योर्तिलिंग के रूप में जाना जाता है। द्वादश ज्योर्तिलिंगों के संबंध में शिव पुराण की कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में कहा गया है-

सौराष्ट्रेसोमनाथंच श्रीशैलेमल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबंधे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमा:।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशय:।।

इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि 12 ज्योर्तिलिंगों के स्थापना स्थलों में से महाराष्ट्र भी एक है। मुम्बई का वालकेश्वर शिव मंदिर महाराष्ट्र के शिव आराधना के मुख्य केंद्रों में राज्य के अन्य हिस्सों की तरह मुम्बई का विशेष महत्व है क्योंकि यहां के वालकेश्वर इलाके में पुराणकालीन शिव मंदिर है। सुप्रसिद्ध रामायण ग्रंथ में भी वालकेश्वर नामक स्थान का उल्लेख मिलता है।  कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम अयोध्या से वनवास के लिए दक्षिण क्षेत्र की ओर निकले थे तो उन्होंने कुछ समय तक वालकेश्वर क्षेत्र में विश्राम किया था।

इस दौरान उन्हें भगवान शंकर की उपासना करने के लिए शिवलिंग की आवश्यकता थी, उसे लाने के लिए उन्होंने लक्ष्मण को काशी भेजा लेकिन लक्ष्मण के वापस आने तक उपासना का वक्त समाप्त होने लगा, ऐसे में प्रभु श्रीराम ने समुद्र के किनारे बालू का शिवलिंग बनाया और उसी की पूजा करने लगे।

भगवान श्रीराम की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रभु श्री राम को दर्शन दिए, उसी समय उस शिवलिंग का नाम बालु का ईश्वर पड़ गया, बालू के इस लिंग के कारण उस क्षेत्र का नाम वालकेश्वर पड़ा, स्थानीय लोग बालू को वालु कहते थे, इसलिए इस क्षेत्र का नाम वालकेश्वर पड़ गया। बार-बार जीर्णोद्धार होते रहने के कारण अब मूल मंदिर नहीं बचा है। वर्तमान में यहां जो मंदिर है वह पेशवाकालीन है और इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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