Vaikuntha Chaturdashi Katha: वैकुण्ठ चतुर्दशी पर पढ़ें, भगवान शिव और श्री विष्णु की भक्ति से जुड़ी अद्भुत कथा
punjabkesari.in Tuesday, Nov 04, 2025 - 07:01 AM (IST)
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Vaikuntha Chaturdashi Pauranik Katha 2025: Vaikuntha Chaturdashi 2025 की पौराणिक कथा जानिए – जब भगवान विष्णु ने महादेव की भक्ति में अपनी आंख अर्पित की। वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत रखने से मिलता है, वैकुण्ठ लोक का आशीर्वाद और मोक्ष। हिंदू धर्म के पवित्र मास कार्तिक के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों देवताओं के मिलन का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त इस दिन व्रत रखकर दोनों देवों की पूजा करता है, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह दिन कर्म, भक्ति और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।

भगवान विष्णु की भक्ति की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु काशी (वाराणसी) पधारे और देवाधिदेव महादेव का पूजन करने का निश्चय किया। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर पवित्र गंगा में स्नान किया और एक हजार कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ की आराधना का संकल्प लिया।
जब वे पूजन कर रहे थे, तो भगवान शिव ने विष्णु जी की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प छिपा लिया। भगवान विष्णु ने देखा कि अब उनके पास केवल 999 कमल रह गए हैं। उन्होंने सोचा, “मेरी आंखें भी तो कमल के समान हैं। मुझे कमलनयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है, इसलिए मैं अपनी आंख से ही पूजन पूरा करूंगा।”
यह विचार कर उन्होंने अपनी एक आंख भगवान शिव को अर्पित करने का संकल्प किया। जैसे ही वे अपनी आंख निकालने लगे, महादेव स्वयं प्रकट हो गए और विष्णु जी की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए।

शिव और विष्णु का आशीर्वाद
भगवान शिव ने विष्णु से कहा, “हे विष्णु! आपके समान भक्त संसार में कोई नहीं। आपकी भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। आज के दिन से यह चतुर्दशी ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से प्रसिद्ध होगी। जो भक्त इस दिन व्रत रखकर पहले आपका और फिर मेरा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।”
इसके बाद भगवान शिव ने विष्णु को करोड़ों सूर्यों की कांति से दीप्त सुदर्शन चक्र प्रदान किया और उन्हें अमिट कीर्ति का आशीर्वाद दिया।
वैकुण्ठ चतुर्दशी का आध्यात्मिक संदेश
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में त्याग और समर्पण ही मुख्य तत्व हैं। विष्णु जी ने अपने देवत्व का अहंकार नहीं किया, बल्कि भक्ति में स्वयं का अर्पण कर दिया। वैकुण्ठ चतुर्दशी का संदेश है कि जो मनुष्य अहंकार त्याग कर श्रद्धा से दोनों देवों की उपासना करता है, वह भौतिक बंधन से मुक्त हो जाता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का फल
इस दिन काशी में गंगा स्नान, शिवलिंग का अभिषेक और विष्णु पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। ऐसा कहा गया है कि इस दिन स्वर्ग और वैकुण्ठ के द्वार खुले रहते हैं। जो मनुष्य श्रद्धा से व्रत करता है, उसे जीवन में धन, शांति और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है।

