Utpanna Ekadashi 2025: उत्पन्ना एकादशी व्रत के दौरान करें इन मंत्रों का जाप, विष्णु जी देंगे अनंत फल का आशीर्वाद
punjabkesari.in Tuesday, Nov 04, 2025 - 06:00 AM (IST)
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Utpanna Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है, क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु की आराधना और उपवास के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की उत्पन्ना एकादशी को सभी एकादशियों में श्रेष्ठ कहा गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत और मंत्रजाप करने से मनुष्य को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा शांति का वास होता है। कहा जाता है कि यदि उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु जी की पूजा बिना मंत्रों के की जाए, तो वह अधूरी मानी जाती है। भक्त पूरे श्रद्धा भाव से व्रत रखकर और इन मंत्रों का जाप कर भगवान विष्णु से कृपा की कामना करते हैं, जिससे उनका जीवन धर्म, भक्ति और सौभाग्य से भर जाता है। तो आइए जानते हैं कि उत्पन्ना एकादशी के दिन कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी के दिन करें इन मंत्रों का जाप
विष्णु मूल मंत्र
ॐ नमोः नारायणाय॥
सुख-समृद्धि का विशेष मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

भगवते वासुदेवाय मंत्र
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
श्री विष्णु मंत्र
मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥

विष्णु के पंचरूप मंत्र
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।

लक्ष्मी विनायक मंत्र
दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥

