Kundli Tv- तुलसीदास के ये दोहे हैं आपके हर सवाल का जवाब
punjabkesari.in Thursday, Sep 20, 2018 - 06:38 PM (IST)
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गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रंथ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से अत्यधिक प्रेम करते थे और एक बार भयंकर बारिश और तूफान की चिंता किए बिना भीषण अंधेरी रात में अपनी पत्नी से मिलने अपने ससुराल पहुंच गए लेकिन रत्नावली यह सब देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हुई और उन्हें राम नाम में ध्यान लगाने की नसीहत दी इसी उलाहना ने तुलसी से गोस्वामी तुलसीदास बना दिया।
रत्नावली ने कहा था–
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत”
अर्थात-
यह मेरा शरीर तो चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर है फिर भी इस चमड़ी के प्रति इतनी मोह, अगर मेरा ध्यान छोड़कर राम नाम में ध्यान लगाते तो आप भवसागर से पार हो जाते। फिर इसके बाद तुलसीदास जी का मन पूर्ण रूप से राम नाम में रम गया और फिर उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की जिनमें “रामचरितमानस” और “हनुमान चालीसा” उनकी अति प्रसिद्ध रचना है तो आइए हम सभी तुलसीदास द्वारा रचित उनके दोहों को हिंदी अर्थ सहित जानते हैं।
“काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान”
अर्थात-
जब तक किसी भी व्यक्ति के मन में कामवासना की भावना, गुस्सा, अंहकार, लालच से भरा रहता है तब तक ज्ञानी और मुर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नही होता है दोनों एक ही समान के होते हैं।
“सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं
धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी”
अर्थात-
मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिखलते हैं सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते हैं जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते हैं कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते हैं और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते हैं।
“करम प्रधान विस्व करि राखा,
जो जस करई सो तस फलु चाखा”
अर्थात-
ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा।
“तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर
सुंदर के किहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि”
अर्थात-
सुंदर वेशभूशा देखकर मुर्ख व्यक्ति ही नही बुद्धिमान व्यक्ति भी धोखा खा बैठते है ठीक उसी प्रकार जैसे मोर देखने में बहुत ही सुंदर होता है लेकिन उसके भोजन को देखा जाय तो वह साँप और कीड़े मकोड़े ही खाता है।
“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर”
अर्थात-
मीठी वाणी बोलने से चारो ओर सुख का प्रकाश फैलता है और मीठी बोली से किसी को भी अपने ओर सम्मोहित किया जा सकता है इसलिए सभी सभी मनुष्यों को कठोर और तीखी वाणी छोडकर सदैव मीठे वाणी ही बोलना चाहिए।
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