इनकी पूजा के बिना अधूरा माना जाता है तुलसी विवाह

punjabkesari.in Thursday, Nov 07, 2019 - 10:02 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। कहते हैं कि ये वहीं दिन है जब भगवान विष्णु योग निद्रा से चार माह के बाद जागते हैं। ऐसा माना जाता है कि पूरे चार महीने तक सभी शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक लगी होती है जोकि इस दिन खुल जाती है और फिर से सारे शुभ कामों की शुरूआत हो जाती है। बता दें कि इस एकादशी को हरि प्रबोधिनी, देवोत्थान आदि नामों से भी जाना जाता है। इस खास दिन पर ही तुलसी विवाह भी किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस खास पूजन के बारे में जिनका बिना तुलसी विवाह अधूरा माना जाएगा। जी हां, ऐसी मान्यता है कि इस दिन इन विशेष देवों की आराधना भी जरूरी है। 
PunjabKesari, tulsi vivah
शास्त्रों के अनुसार देवों के सोने और जागने का अन्तरंग संबंध आदि नारायण भगवान सूर्य वंदना से हैं, क्योंकि सृष्टि की सतत क्रियाशीलता सूर्य देव पर ही निर्भर है और सभी मनुष्यों की दैनिक व्यवस्थाएं भी सूर्योदय से निर्धारित मानी जाती है। चूंकि ये प्रकाश पुंज है तो इसीलिए सूर्य देव को भगवान श्री विष्णु जी का ही स्वरूप माना गया है, इसलिए तो प्रकाश को ही परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। इसलिए देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु सूर्य के रूप में पूजे जाते हैं, जिसे प्रकाश और ज्ञान की पूजा कहा जाता है।
PunjabKesari, tulsi vivah
इन तीन की पूजा है जरूरी
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के विराट रूप की पूजा की जाती है। लेकिन इसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी व सूर्य नारायण की पूजा भी आवश्यक होती है। कहते हैं कि जो भक्तगण इस दिन इन तीनों की पूजा सच्चे मन से करते हैं उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उनकी हर इच्छा पूरी होती है। इसके साथ ही इस खास दिन पर आदित्यों के नामों के जप करने का भी उल्लेख है। बारह आदित्य- इंद्र, धातृ, भग, त्वष्ट, मित्र, वरुण, अयर्मन, विवस्वत, सवितृ, पूलन, अंशुमत एवं विष्णु जी। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Lata

Recommended News

Related News