त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगः एक साथ करें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के दर्शन
punjabkesari.in Thursday, Aug 01, 2019 - 09:08 AM (IST)
ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)
कहते हैं कि सावन में 12 ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक के भी दर्शन करने को मिल जाएं तो व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। सावन के महीने में ज्योतिर्लिंगों व शिवलिंगों का पूजन करने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। अगर आप भी महादेव की कृपा पाना चाहते हैं तो सावन में किसी एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जरूर जाएं। 12 में 7 ज्योतिर्लिंगों के पीछे की कथा को हम पहले ही बता चुके हैं। आज हम आबते करेंगे आठवें ज्योतिर्लिंग यानि त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में।
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। मंदिर के अंदर तीन छोट -छोटे लिंग हैं, जिन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश भगवन का प्रतीक माना जाता है। यही केवल ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां तीनों ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ विराजते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है।
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान् श्रीगणेशजी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर मांगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।
अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हांकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंगः जहां स्वयं भोले बाबा करते हैं निवास
सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहां से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहां भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएं।
तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहां एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगरी की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।'
भगवान शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूं।'
केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगः यहां जानें, इससे जुड़ी पुराणों में वर्णित कथा
इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहां त्र्यम्ब ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहां पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।