ये है Successful Life पाने का सबसे सरल फार्मूला
punjabkesari.in Wednesday, Feb 19, 2020 - 11:36 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यह वह दौर था जब छत्रपति शिवा जी आततायियों के विरुद्ध छापामार युद्ध में लगे हुए थे लेकिन उन्हें मन-मुताबिक सफलता नहीं मिल रही थी। इसी क्रम में एक बार एक मुश्किल दिन बिताकर लौटते हुए वह जंगल में भटक गए और एक बुजुर्ग महिला की झोंपड़ी के पास पहुंचे। भूख से व्याकुल शिवाजी ने महिला से भोजन देने का निवेदन किया। उस वनवासी वृद्धा के पास उस वक्त कोदों (एक प्रकार का अनाज) के अलावा और कुछ नहीं था इसलिए उसने स्नेहपूर्वक कोदों का भात पकाकर भटके सैनिक के सामने पत्तल पर परोस दिया।
शिवा जी उस समय भूख से बेहाल थे। भात देखकर उनसे रहा नहीं गया। खाने की आतुरता में उन्होंने तुरंत भात छुआ जिससे उनकी उंगलियां जल गईं। मुंह से फूंक-फूंक कर वह जलन मिटाने की चेष्टा करने लगे। पास ही बैठी वृद्धा यह दृश्य देख रही थी। उससे रहा न गया और वह बोल पड़ी, ''बेटा, तुम्हारी शक्ल तो शिवाजी से मिलती ही है, अक्ल भी वैसी ही लगती है-नासमझी से भरी हुई।"
यह सुनकर शिवा जी हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, ''आपको ऐसा क्यों लगता है कि शिवाजी नासमझ है? बाकी कई लोग जिन्हें मैं जानता हूं वे तो शिवाजी को बहुत बुद्धिमान मानते हैं।"
बुजुर्ग महिला ने उत्तर दिया, ''जब मैंने खाना दिया तो तुमने किनारे की ठंडी हो चुकी कोदों नहीं खाईं बल्कि बीच के गर्म भात में अपनी उंगलियां डाल दीं। ऐसे में उंगलियां तो जलनी ही थीं। शिवा जी भी ऐसी नासमझी दिखा रहा है। वह दूर स्थित छोटे-छोटे किलों को जीतने की कोशिश करने की बजाय सीधे बड़े किलों पर विजय पाना चाहता है और मुंह की खाता है।"
वृद्धा का यह सफलता का मूलमंत्र शिवाजी के लिए बड़ा सबक साबित हुआ। उन्होंने समझ लिया कि बड़े लक्ष्य पाने के लिए पहले छोटे लक्ष्यों को हासिल करना ज़रूरी है।