कलियुग की ये बातें जो आज के समय में हो रही हैं सच

punjabkesari.in Thursday, Aug 01, 2019 - 11:46 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता हिंदुओं का प्रमुख ग्रंथ माना गया है। आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। साथ ही गीता में कर्म, अर्थ, और जीवन जीने का अद्भुत ज्ञान है। इसके साथ ही भगवान ने गीता में उपदेश देकर लोगों को जीवन जीने की कला के बारे में भी बताया है। इसके अलावा द्वापर युग के अंत में भी, भगवान ने कलियुग के लिए कुछ बातें कही थी, जोकि आज के समय में सच हो रही हैं। तो चलिए आज जानते हैं उन बातों को विस्तार से जो भगवान ने कलियुग को लेकर बताई थी। 
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श्लोक
ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

अर्थ- इस श्लोक के मुताबिक कलियुग में अर्थ धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन प्रतिदिन घटती जाएगी। आज के समय में अगर देखा जाए तो व्यक्ति अपने अंदर की शक्ति को कम करता जा रहा है।

वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥

अर्थ- कलियुग में जिस व्यक्ति के पास जितना धन होगा, वो उतना ही गुणी माना जाएगा और कानून, न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर ही लागू किया जाएगा।

दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

अर्थ- इस श्लोक के अनुसार इस युग में पुरुष स्त्री बिना विवाह के ही एक दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे। वही व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे।

लिगं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ॥
अर्थ-
इसके अनुसार जो मनुष्य घूस देने या धन खर्च करने में असमर्थ होगा। उसे अदालतों से सही न्याय नहीं मिल सकेगा। साथ ही जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वार्थी होगा वो ही इस युग में बहुत विद्वान माना जाएगा।
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क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम्।।
अर्थ-
इस युग में लोग भूख प्यास और कई तरह की चिंताओं से दुखी रहेंगे। कई तरह की बीमारियां उन्हें हर समय घेरे रहेगी। साथ ही कलियुग में मनुष्य की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की ही होगी।

दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि ॥
अर्थ-
लोग दूर के नदी और तालाबों को तो तीर्थ मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता पिता की निंदा करेंगे। इसके इलावा सिर पर बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता मानी जाएगी और केवल पेट भरना ही लोगों का लक्ष्य होगा।

अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः।
शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥
अर्थ-
कलयुग में कभी बारिश नहीं होगी जिससे सूखा पड़ जाएगा। साथ ही कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी भीषण गर्मी हो जाएगी, तो कभी आंधी आएगी तो कभी बाढ़ आ जाएगी। इन परिस्तिथियों से लोग परेशान होंगे और नष्ट होते जाएंगे।

अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥
अर्थ-
इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा। वही इस युग में विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता होगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे कि वो अंतरात्मा से शुद्ध हो गए हैं।
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दाक्ष्यं कुटुंबभरणं यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥
अर्थ-
धर्म-कर्म के काम केवल लोगों के सामने अच्छा दिखने और दिखावे के लिए ही किए जाएंगे। पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी और लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारेंगे।

आच्छिन्नदारद्रविणा यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥
अर्थ-
अकाल और अत्याधिक करों के कारण परेशान लोग घर छोड़ कर सड़कों और पहाड़ों पर रहने को मजबूर हो जाएंगे। साथ ही पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फूल और बीज तक खाने को मजबूर हो जाएंगे।
 


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