...तो ऐसे शुरू हुई दही हांडी फोड़ने की परंपरा
punjabkesari.in Thursday, Aug 22, 2019 - 06:15 PM (IST)
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जन्माष्टमी का अवसर आ रहा इस बात से तो हर कोई वाकिफ़ है। मगर देश विभिन्न शहरों में इसे मनाए जाने वाली परंपराओं के बारे में शायद नही जानता होगा। अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपको यकीनने ये बताएं कि देश के अन्य शहरों आदि में इसे कैसे मनाया जाता है। आप कई हद तक सही ही सोच रहे हैं लेकिन हम आपको उस परंपरा के बारे में बताने वाले हैं जो देश के लगभग हर हिस्से में मनाई जाती है। जी हां, आपका अंदाज़ा बिल्कुल सही जा रहा है। हम बात कर रहे हैं दही-हांडी वाली परंपरा की। अब आप में से लगभग लोगों ने इसका दृश्य देखा होगा लेकिन हम दावे के साथ कह सकते हैं बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हे ये नहीं पता होगा कि आख़िर इस परंपरा की शुरुआत हुई कैसे। अगर आप भी नहीं जानते तो आज आप इस जानकारी से रूबरू हो जाएंगे।
देश भर में दही हांडी का उत्सव ठीक जन्माष्टमी से एक दिन बाद मनाया जाता है। इस बार 24 अगस्त की जन्माष्टमी है तो दही हांडी का उत्सव 25 अगस्त को मनाए जाने की तैयारी है। कहा जाता है जन्माष्टमी का त्यौहार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की खुशियां मनाने का पर्व है तो वहीं दही हांडी कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकी दिखाने वाला उत्सव है। बताया जाता है कि पहले समय में दही हांडी को मुख्य रूप से केवल महाराष्ट्र और गुजरात में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे पूरे देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
कैसे शुरू हुई दही हांडी की परंपरा
शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद जिसे हम आप भाषा में भादो का महीना भी बोल देते हैं की अष्टमी तिथि को अर्द्धरात्रि में हुआ था। इन्हीं के जन्म की खुशियां मनाने के तौर पर इनके भक्त जिनमें बच्चों से लेकर युवा सभी गोविंदा बनकर जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का आयोजन करते हैं। देश भर में जगह-जगह चौराहों पर दही और मक्खन से भरी मटकियां लटकाई जाती हैं और गोविंदाओं द्वारा मानव पिरामिड बनाकर एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर इसे तोड़ा जाता है।
जैसे कि इनके भक्त जानते हैं बचपन से ही भगवान कृष्ण को दही और मक्खन काफ़ी पसंद था। वह अक्सर गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। इनकी इन्हीं शरारतों से तंग आकर यशोदा मैय्या से उनकी शिकायत किया करती थीं। यशोदा मैय्या कान्हा को समझाती-बुझाती, लेकिन पर वो कहां बाज़ आते थे अपनी इन नटखट शरारतों से। तब गोपियां उनसे अपना दही मक्खन बचाने के लिए मटकियों और हांडियों को ऊंचाई पर टांग देती थीं। मगर कान्हा भी चतुराई से अपने दोस्तों के ऊपर चढ़कर मटकी में से सारा दही और मक्खन चुराकर खा जात थे। कई बार वह शरारत में दही से भरी मटकियां फोड़ भी देते थे। कहा जाता है कि कृष्ण की इसी नटखट शरारत को याद करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है।