इन दो विशेषताओं को लेकर देश भर में प्रसिद्ध है मां का ये मंदिर

punjabkesari.in Monday, Jan 15, 2018 - 12:00 PM (IST)

भारत में अगर भक्ति व तीर्थ स्थलों के लिए उत्तर प्रदेश को शामिल न किया जाए तो अधूरी बात रहेगी। उत्तर प्रदेश न सिर्फ इतिहास, संस्कृति व सभ्यता को अपने में समेटे हुए है बल्कि यह अपनी खूबसूरती के कारण भी पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां भक्ति में डूबे बहुत से तीर्थ स्थल हैं जो श्रद्धालुओं को दूर-दूर से खींचे लिए आते हैं। यहां की पावन धरती भगवान की श्रद्धा में डूबे भक्तों को खूब भाति है जिसके मोह में पर्यटक हजारों की संख्या में यहां आते हैं। तो आईए जानें एेसे मंदिर के बारे जो अपनी अनोखी विशेषताओं को लेकर देशभर में प्रसिद्ध है।  


तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर से 20 किलो मीटर की दूरी पर तथा चौरी-चौरा से 5 किलो मीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये मंदिर हिंदू भक्तो के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में मान्यता है कि वहां मन से जो भी मुरादें मांगी जाएं वो पूरी हो जाती हैं। शारदीय नवरात्रों में यहां भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। आजादी की लड़ाई में इस मंदिर का बहुत बड़ा हाथ है। 


मंदिर से जुड़ा क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह का इतिहास 
डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह मां के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। जब पूरे देश में आजादी की पहली हुंकार उठी, गुरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह ने उसमें शामिल हो गए। वह घने जंगल में रहते थे। उसी जंगल से गुर्रा नदी गुजरती थी। जंगल में बाबू बंधू सिंह एक तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडियां बनाकर मां भगवती की पूजा करते थे। वह अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते और मां के चरणों में उनकी बलि चढ़ा देते थे। इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई। उन्होंने अपने गुप्तचर उनके पीछे छोड़ दिए। जल्द ही एक गद्दार ने बाबू बंधू सिंह के बारे में उन्हें पूरी जानकारी दे दी। इसके बाद अंग्रेजों ने जाल बिछाकर इस वीर सेनानी को पकड़ लिया। 

 

अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका गया। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी मां का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी कि मां उन्हें जाने दें। कहते हैंं कि बंधू सींह की प्रार्थना देवी ने  सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए। अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहां एक स्मारक भी बना है।


यहां मिलता है मटन बाटी का प्रसाद
यह देश का इकलौता मंदिर है जहां प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं। बंधू सिंह ने अंग्रेजों के सिर चढ़ा के जो बली कि परंपरा शुरू करी थी वो आज भी यहां चालू है। अब यहां पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं साथ में बाटी भी दी जाती हैं। वैसे तो पुराने समय में देवी के कई मंदिरो में बलि कि परंपरा थी लेकिन समय के साथ-साथ लगभग सभी जगह से यह परंपरा बंद कर दी गई लेकिन तरकुलहा देवी के मंदिर में यह अब भी चालू है हालांकि इस पर अब काफी विवाद है और इसे बंद कराने के लिए कोर्ट में केस भी चल रहा हैं। तरकुलहा देवी मंदिर में साल में एक बार मेला लगता हैं जिसकी शुरुआत चैत्र रामनवमी से होती हैं यह मेला एक महीने चलता हैं। यहां पर मन्नत पूरी होने पर घंटी बांधने का भी रिवाज है। 


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