स्वामी प्रभुपाद: परमपुरुष को केवल भगवत्कृपा से जाना जा सकता है

punjabkesari.in Sunday, Apr 13, 2025 - 09:25 AM (IST)

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अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय:।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥7.24॥

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अनुवाद एवं तात्पर्य: बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था और अब मैंने इस व्यक्तित्व को धारण किया है। अपने अल्पज्ञान के कारण वे मेरी अविनाशी तथा सर्वोच्च प्रकृति को नहीं जान पाते।

श्री रामानुजाचार्य की परम्परा के महान भगवद्भक्त यामुनाचार्य ने इस संबंध में कहा है, ‘‘विभिन्न वैदिक ग्रंथों को पढ़कर मनुष्य आपके गुण, रूप तथा कार्यों को जान सकता है और इस तरह आपको भगवान के रूप में समझ सकता है, किन्तु जो लोग रजो तथा तमोगुण के वश में हैं ऐसे असुर तथा अभक्तगण आपको नहीं समझ पाते। ऐसे अभक्त वेदांत, उपनिषद् तथा वैदिक ग्रंथों की व्याख्या करने में कितने ही निपुण क्यों न हों, वे भगवान को नहीं समझ पाते।’’

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ब्रह्मसंहिता में यह बताया गया है कि केवल वेदांत साहित्य के अध्ययन से भगवान को समझा जा सकता। परमपुरुष को केवल भगवत्कृपा से जाना जा सकता है। न केवल देवताओं के उपासक अल्पज्ञ होते हैं, अपितु वे अभक्त भी जो कृष्णभावनामृत से रहित हैं। 

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Content Editor

Prachi Sharma

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