स्वामी प्रभुपाद: योगा यास से क्लेश नष्ट

punjabkesari.in Sunday, May 12, 2024 - 09:23 AM (IST)

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युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा॥6.17॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगा यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है।

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खाने, सोने, रक्षा करने और मैथुन करने में-जो शरीर की आवश्यकताएं हैं-अति करने से योगा यास की प्रगति रुक जाती है। जहां तक खाने का प्रश्न है, इसे तो प्रसाद्म या पवित्रीकृत भोजन के रूप में नियमित बनाया जा सकता है। भगवद्गीता के अनुसार (9.26) भगवान कृष्ण को शाक, फूल, फल, अन्न, दुग्ध आदि भेंट किए जाते हैं।

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अव्यर्थ कालत्वम-कृष्णभावनाभावित व्यक्ति अपना एक मिनट का समय भी भगवान की सेवा के बिना नहीं बिताना चाहता। अत: वह कम से कम सोता है। इसके आदर्श श्रील रूपगोस्वामी हैं जो कृष्ण की सेवा में निरंतर लगे रहते थे और दिन भर में दो घंटे से अधिक नहीं सोते थे और कभी-कभी तो उतना भी नहीं सोते थे। ठाकुर हरिदास तो अपनी माला में तीन लाख नामों का जप किए बिना न तो प्रसाद ग्रहण करते थे और न ही सोते ही थे।
जहां तक कार्य का प्रश्न है कृष्णभावनाभावित व्यक्ति ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता जो कृष्ण से संबंधित न हो।

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Content Editor

Prachi Sharma

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