स्वामी प्रभुपाद: असीम सुख भोगता है स्वरूपसिद्ध व्यक्ति

punjabkesari.in Sunday, Dec 10, 2023 - 08:03 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते।।5.21।।

अनुवाद एवं तात्पर्य: ऐसा मुक्त पुरुष भौतिक इंद्रियसुख की ओर आकृष्ट नहीं होता अपितु सदैव समाधि में रह कर अपने अंतर में आनंद का अनुभव करता है। इस प्रकार स्वरूपसिद्ध व्यक्ति बरब्रह्म में एकाग्रचित्त होने के कारण असीम सुख भोगता है।

PunjabKesari Swami Prabhupada

श्री कृष्ण भावनामृत के महान भक्त श्रीयामुनाचार्य ने कहा है :
यदवधि मम चेत: कृष्णपादारविंदे,
नवनवरसधामन्युद्यतं रन्तुमासीत्।
तदवधि बत नारीसंगमे स्मर्यमाने,
भवति मुखविकार: सुष्ठु निष्ठीवनं च।।

अर्थात  ‘जब से मैं श्री कृष्ण की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगकर उनमें नित नवीन आनंद का अनुभव करने लगा हूं, तब से जब भी कामसुख के बारे में सोचता हूं तो इस विचार पर ही थूकता हूं और मेरे होंठ अरुचि से सिमट जाते हैं।’

PunjabKesari Swami Prabhupada

ब्रह्मयोगी अथवा कृष्णभावनाभावित व्यक्ति भगवान की प्रेमाभक्ति में इतना अधिक लीन रहता है कि इंद्रिय सुख में उसकी तनिक भी रुचि नहीं रह जाती। भौतिकता की दृष्टि में कामसुख ही सर्वोपरि आनंद है। सारा संसार उसी के वशीभूत है और भौतिकतावादी लोग तो इस प्रोत्साहन के बिना कोई कार्य नहीं कर सकते।

किन्तु कृष्णभावनामृत में लीन व्यक्ति कामसुख के बिना ही उत्साहपूर्वक अपना कार्य करता रहता है। यही आत्म साक्षात्कार की कसौटी है। आत्म साक्षात्कार तथा कामसुख कभी साथ-साथ नहीं चलते। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति जीवन्मुक्त होने के कारण किसी प्रकार के इंद्रियसुख द्वारा आकर्षित नहीं होता।

PunjabKesari Swami Prabhupada
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Prachi Sharma

Recommended News

Related News