Success Tips: सफलता के लिए जरूरी है ये गुण, क्या आप में है
punjabkesari.in Saturday, Apr 22, 2023 - 10:00 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Success Tips: जीवन की सफलता एवं विफलता के निर्णायक तत्वों में इच्छाशक्ति का स्थान सर्वोपरि है। वस्तुत: इच्छाशक्ति ही जीवन की विफलताओं एवं संकटों का मूल कारण है। इसके होने पर व्यक्ति जैसे शून्य में से सब कुछ प्रकट कर देता है और इसके अभाव में व्यक्ति सब कुछ होते हुए भी दुर्भाग्य एवं असफलता का रोना रोता रहता है।
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इच्छाशक्ति की कमी से व्यक्ति छोटी-छोटी आदतों एवं वृत्तियों का दास बन कर रह जाता है और व्यक्तित्व तमाम तरह के छल-छिद्रों से भरता जाता है। छोटी- छोटी नैतिक व चारित्रिक दुर्बलताएं जीवन की बड़ी-बड़ी त्रासदियों और दुर्भाग्यों को जन्म देती हैं।
इसकी दुर्बलता के कारण ही व्यक्ति छोटे-छोटे प्रलोभनों एवं दबावों के आगे घुटने टेक देता है और उतावलेपन में ऐसे-ऐसे दुष्कृत्य कर बैठता है कि बाद में पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता।
जीवन की इस मूलभुत त्रासदी की स्वीकारोक्ति महाभारत में दुर्योधन के मुख से भगवान श्री कृष्ण के सामने कुछ इस तरह से होती है।
जाममि धर्म न च में प्रवृत्ति:। जानाम्यधर्म न च में निवृत्ति:।।
अर्थात : धर्म के लिए क्या सही है, इसको मैं जानता हूं किन्तु उसे करने की मेरी प्रवृत्ति नहीं होती। इसी तरह अधर्म को, जो अनुचित व पापमय है, उसे भी मैं जानता हूं किन्तु उसे करने से मैं खुद को रोक नहीं सकता।
दुर्योधन की इस स्वीकारोक्ति में मानवीय इच्छाशक्ति की दुर्बलता एवं विफलता का मर्म निहित है।
इच्छाशक्ति क्या है
इच्छाशक्ति के विकास से पूर्व यह जानना उचित होगा कि इच्छाशक्ति है क्या ? स्वामी विवेकानंद के शब्दों में इच्छा आत्मा और मन का संयोग है। व्यावहारिक जीवन में यह मन की वह रचनात्मक शक्ति है जो निर्मित क्रिया को एक निश्चित ढंग से अर्निणत क्रिया को न करने में सूक्ष्म होती है।
इच्छाशक्ति के विकास के संदर्भ में दूसरा तथ्य यह है कि इसको प्रत्येक व्यक्ति द्वारा बढ़ाया जा सकता है। सारी शक्ति एवं संकल्प तुम्हारे अंदर सन्निहित है, इस तथ्य को गहनता से हृदयंगम कर हम इच्छाशक्ति के विकास पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
‘हाऊ टू जैनरेटल विल पावर इन द ह्यूमन सिस्टम’ के अंतर्गत स्वामी बुद्धानंद लिखते हैं कि इसके लिए सर्वप्रथम हमें मस्तिष्क एवं हृदय विचार एवं भाव के बीच के विभाजन को हटाना होगा। इसके लिए हमें अपने अस्तित्व के उच्चतम सत्य से प्रेम करना होगा कि हम दिव्यता के अंशधर हैं, हम शाश्वत की संतान हैं। हमारे भीतर अनंत संभावनाएं विद्यमान हैं जिन्हें हमें अभिव्यक्त करना है।
यह वस्तुत: मन, वाणी एवं कर्म तथा विचार भाव एवं क्रिया की एकता है। खुद को पहचानना है, अन्यथा हम सब गंवा कर चले जाएंगे। अंत में मौत सामने रहेगी और सारे अवसर जाते रहेंगे।
सिकंदर की पीड़ा समझने जैसी है जब वह अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त करता है कि ‘‘मेरे दोनों हाथ जनाजे के बाहर खोलकर रखे जाएं ताकि दुनिया देखे मैं दुनिया को जीतने वाला बादशाह खाली हाथ जा रहा हूं।’’