क्यों रावण को करना पड़ा अपनी ही पुत्री का हरण, जानें असल वजह
punjabkesari.in Monday, May 13, 2019 - 03:09 PM (IST)
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हिंदू धर्म के ग्रंथों में रावण और देवी सीता से संबंधित बहुत सी कथाएं मिलची है लेकिन आज हम आपको जिस कथा के बारे में बताने जा रहे हैं आप में शायद हो कोई ऐसा होगा जो जानता होगा। तो चलिए देर न करते हुए आपको बताते हैं इस दिलचस्प और रोचक कथा के बारे में-
क्या आप जानते हैं कि देवी सीता रावण की बेटी थी। जी हां, हम जानते हैं सुनते ही आपके पैरों तलें ज़मीन निकल गई होगी का आख़िर हम ये क्या कह रहे हैं मगर आपको बता दें कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस तथ्य को सच कहा जाता है। कहा जाता है कि देश के कई में रामायण की कथाएं प्रचलित हैं लेकिन थाइलैंड में प्रचलित रामायण की कथाओं के अनुसार देवी सीता रावण की बेटी थी, जिसे रावण ने एक भविष्यवाणी के बाद जमीन में दफ़ना दिया था। इसके मुताबिक भविष्यवाणी में कहा गया था कि यह लड़की तेरी मौत का कारण बनेगी। बताया जाता है कि इसी कारण रावण ने कभी सीता के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया।
इधर अद्भुत रामायण के अनुसार, एक बार दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण, माता लक्ष्मी को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए हर दिन एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूदें डालते थे। अद्भुत रामायण के अनुसार, एक दिन रावण उनकी अनुपस्थिति में वहां पहुंचा और ऋषियों का रक्त, उसी कलश में एकत्र कर के लंका लेकर चला गया। कहा जाता है कि उस कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण में दे दिया और कहा कि इसमें विष है, सावधानी से रखें।
रावण की उपेक्षा से दुखी होकर मंदोदरी ने आत्महत्या करने की इच्छा से घड़े में भरा वह रक्त ज़हर समझकर पी लिया। जिससे वह अनजाने में ही गर्भवती हो गई। जबकि उस वक्त रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर गया था। ऐसे में मंदोदरी ने सोचा कि जब मेरे पति मेरे पास नहीं है, जब उन्हें इस बात का पता चलेगा। तो वह क्या सोचेंगे। यही सब सोचते हुए मंदोदरी तीर्थ यात्रा के बहाने कुरुक्षेत्र चली गई।
जहां उसने गर्भ को निकालकर एक घड़े में रखकर भूमि में दफ़न कर दिया और सरस्वती नदी में स्नान कर वह वापस लंका लौट गई। यहां की मान्यता के अनुसार कि वही घड़ा हल चलाते वक्त मिथिला के राजा जनक को मिला था, जिसमें से देवी सीता प्रकट हुईं थी। इन्हीं कथा के आधार पर विद्वान मानते हैं कि सीता और रावण में पिता-पुत्री का संबंध था। हालांकि कई ग्रंथों में सीता-रावण का संबंध पिता-पुत्री की तरह नहीं दर्शाया गया।