भगवान जगन्नाथ की अद्भुत लीला जो हर दिल में भक्ति का दीप जलाएगी, आप भी पढ़ें !
punjabkesari.in Wednesday, Jul 16, 2025 - 07:00 AM (IST)

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Story Of Bhagwaan Jagannath: एक दिन कर्मा बाई की इच्छा हुई कि ठाकुर जी को फल-मेवे की जगह अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाऊं । उन्होंने जगन्नाथ प्रभु को अपनी इच्छा बतलायी । भगवान तो भक्तों के लिए सर्वथा प्रस्तुत हैं । प्रभु जी बोले मां ! जो भी बनाया हो वही खिला दो, बहुत भूख लगी है एक समय की बात है, जगन्नाथ पुरी में कर्मा बाई नाम की एक गहरी श्रद्धा वाली भक्तिन रहा करती थीं। उनका भगवान श्रीकृष्ण से रिश्ता कोई सामान्य नहीं था वे उन्हें पुत्र मानती थीं और उसी स्नेह से दिन-रात सेवा करती थीं। उनके लिए भगवान मंदिर में नहीं, उनके घर में ही निवास करते थे। एक दिन कर्मा बाई के मन में विचार आया हर दिन भगवान को फल और मेवा ही चढ़ाती हूं, क्यों न आज कुछ अपने हाथों से बनाकर उन्हें प्रेम से परोसूं ? उन्होंने ये भावना प्रभु से कही। भगवान मुस्कुराए और बोले मां, जो बनाया है, वही दो। मुझे तो बहुत भूख लगी है।
कर्मा बाई ने उस दिन खिचड़ी बनाई थी। प्रेम से वह खिचड़ी भगवान को परोसी। श्रीकृष्ण भी ऐसे लगे मानो उन्हें सच में मां की बनाई खिचड़ी का इंतजार था। कर्मा बाई झट से पंखा झलने लगीं कहीं गर्म खिचड़ी से मेरे लाल का मुंह न जल जाए। भगवान भाव विभोर होकर बोले मां ! ये खिचड़ी तो अमृत जैसी है। अब मैं हर दिन तेरे पास आऊंगा और खिचड़ी ही खाऊंगा। अब यह रोज़ का नियम बन गया। कर्मा बाई सुबह सबसे पहले खिचड़ी बनातीं, और श्रीकृष्ण बाल रूप में दौड़े आते मां मेरी खिचड़ी दो!” और वे आनंद से खा जाते।
एक दिन एक साधु उनके घर आए। उन्होंने देखा कि कर्मा बाई बिना स्नान-ध्यान किए खिचड़ी बना रही हैं। उन्होंने टोकते हुए कहा माता, यह क्या ? बिना स्नान, बिना पूजन, रसोई में प्रवेश ? यह तो अनुचित है।”
कर्मा बाई ने विनम्रता से कहा – “महाराज, जिस भगवान की पूजा सब करते हैं, वो तो खुद मेरे घर भूखे आ जाते हैं। उनके लिए ही तो यह सब पहले करती हूं।”
साधु को लगा, शायद इनकी समझ गलत दिशा में जा रही है। उन्होंने कर्मा बाई को नियम-संयम समझाए पहले स्नान, फिर सफाई, फिर भोग। अगली सुबह कर्मा बाई ने वैसा ही किया। स्नान, सफाई और फिर रसोई। उधर श्रीकृष्ण रोज की तरह समय पर आ पहुंचे मां खिचड़ी दो, जल्दी करो, मुझे मन्दिर भी पहुंचना है लेकिन आज मां तैयार नहीं थीं। प्रभु को प्रतीक्षा करनी पड़ी। जब खिचड़ी आई, तो उन्होंने खाई जरूर लेकिन उस प्रेम का स्वाद नहीं था। बिना पानी पिए, मंदिर की ओर दौड़ पड़े।
मंदिर पहुंचे तो उनके मुख पर खिचड़ी के दाने लगे थे। पुजारी आश्चर्यचकित ! “प्रभु, यह खिचड़ी कहां से ? प्रभु ने मुस्कुराकर कहा मैं रोज कर्मा बाई के घर खिचड़ी खाता हूं। आज देर हो गई क्योंकि एक साधु ने मेरी मां को रोक दिया। पुजारी ने साधु को सब बताया। साधु बहुत पछताए और कर्मा बाई से क्षमा माँगते हुए बोले मां आपके भाव ही सबसे बड़ा धर्म हैं। आप जैसे पहले सेवा करती थीं, वैसे ही कीजिए।”
फिर वह दिन भी आया जब कर्मा बाई इस दुनिया से विदा हो गईं। जब मंदिर के पट खुले, तो भगवान की आंखों से आंसू बह रहे थे।
पुजारी ने पूछा प्रभु, आप रो क्यों रहे हैं ? प्रभु बोले आज मेरी मां नहीं रही। अब मुझे खिचड़ी कौन खिलाएगा ?
पुजारी ने वचन दिया प्रभु, आपकी मां की कमी पूरी नहीं हो सकती लेकिन अब हर दिन सबसे पहले आपको खिचड़ी का ही भोग लगेगा। तभी से आज तक श्रीजगन्नाथ भगवान को मंदिर में रोज़ सबसे पहले खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, एक मां की निश्छल सेवा और प्रेम के प्रतीक रूप में।