Srimad Bhagavad Gita: आप भी घर बैठे किसी का बुरा सोचते हैं...

punjabkesari.in Saturday, May 21, 2022 - 10:56 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: अगर घर बैठे भी किसी का बुरा सोचते हो तो गीता कहती है कि आप पाप के भागी हो। मन और सोच से किया हुआ पाप भी शारीरिक पाप के समतुल्य होता है ।

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करमे इंद्रयाणी संयमय या आस्ते मनसा स्मरण ।
इंद्रिया:अथानि विमूढ़ात्मा मिथ्याचार: स उच्यते ।।

हे अर्जुन- जो मनुष्य अपनी कर्मेन्द्रियों को हठ पूर्वक रोक कर और अपनी ज्ञानेद्रियों से किसी विषय का चिंतन करता है तो वह मनुष्य मूढ़ बुद्धि वाला मिथ्याचारी होता है अथवा यह कह सकते हैं कि जो मनुष्य शारीरिक रूप से अपनी इंद्रियों का भोग नहीं करता है तथा मानसिक रूप से इंद्रियों का भोग करता है तो उस मनुष्य को भी उतना ही पतन व पाप का सामना करना पड़ता है इसलिए किसी का बुरा न सोचना चाहिए और न ही करना चाहिए ।

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डॉ एच एस रावत ( वैदिक और आध्यात्मिक फ़िलॉसफ़र )

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Content Writer

Niyati Bhandari

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