Sri Shankaracharya Mandir: भगवान शिव को समर्पित शंकराचार्य मंदिर, जहां मुगलों ने बनवाया था स्तंभ

punjabkesari.in Wednesday, Jun 05, 2024 - 12:07 PM (IST)

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Sri Shankaracharya Mandir: शंकराचार्य मन्दिर श्रीनगर से 4 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी की चोटी पर दर्शनीय स्थान है। यह मन्दिर श्रीनगर के प्रत्येक भाग से देखा जा सकता है। हालांकि, पहाड़ी की चोटी पर शोभनीय मन्दिर का दूर से केवल ऊपरी भाग ही नजर आता है। दूसरी ओर पहाड़ी की चोटी से सारा श्रीनगर नजर आता है। दूर-दूर पहाड़ियों के बीच तथा डल झील की भव्यता और विशालता को आशीर्वाद देता हुआ यह मंदिर आध्यात्मिकता का पर्याय हो जाता है।

डल झील में शिकारे में बैठकर भी इस मन्दिर का अदभुत नजारा देखा जा सकता है। मन्दिर में शंकराचार्य की मूर्ति शोभनीय है, साथ ही उनका एक ग्रंथ भी पड़ा हुआ है। मन्दिर में तथा अलग एक छोटे से तप कमरे में उनकी मूर्तियां भी स्थापित हैं।

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मंदिर तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक दुर्गानाग से जाता है और इसमें साढ़े 3 किलोमीटर की चढ़ाई है। इस रास्ते से जाकर आपको एक विशेष आनन्द मिलेगा और सैर भी हो जाएगी तथा रास्ते में आप डल झील, चार मीनार, मुगल बागों का दृश्य भी देख सकते हैं।

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गोपादरी या गुपकार टीले को शंकराचार्य या तख्ते-सुलेमान भी कहते हैं। समुद्रतल से 6240 फुट ऊंची यह पहाड़ी श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसके साथ ही जबरवान पहाड़ियां, नीचे डल झील, उत्तर में जेठनाग और दक्षिण में झेलम नदी है।

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यह मन्दिर डोरिक निर्माण पद्धति के आधार पर पत्थरों से बना है। इसके संबंध में कई विद्वानों का कहना है कि इसकी नींव 200 ईसा पूर्व अशोक के पुत्र महाराजा जन्तूक ने डाली थी। इसकी मुरम्मत समय-समय पर यहां के कई राजाओं ने की है। तथापि वर्तमान मन्दिर सिख राजकाल के राज्यपाल शेख मुहीउद्वीन की देन है। उन्होंने ही यहां शिवलिंग स्थापित किया और इस मन्दिर को शंकराचार्य मन्दिर कहा जाना लगा। नए मन्दिर के निर्माण का आदेश उस समय के महाराजा रणजीत सिंह ने दिया था। उनके राज में हिन्दू, सिख और मुसलमान में कोई भेद नहीं होता था और सब धर्मों का एक समान आदर था।
मंदिर के संबंध में यह भी मत है कि सन् 820 ई$ में चौथे शंकराचार्य ने कश्मीर आकर इसी पहाड़ी पर तपस्या की थी। दुर्गानाग की तरफ से महाराजा गुलाब सिंह ने सन् 1925 ई$ में इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए पत्थरों की 41 सीढ़ियां बनवाई थीं।

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दूसरी सड़क नेहरू पार्क से जाती है और 5 किलोमीटर लम्बी है। आप बस या टैक्सी से सड़क मार्ग के द्वारा मन्दिर तक जा सकते हैं। सन् 1974 में यहां टैलीविजन टॉवर लग गया था और समय के साथ बहुत से सैनिक कैम्प भी बना दिए गए। दर्शन करने के लिए आप शाम 6 बजे से पहले ही जाएं। रात को ऊपर जाने नहीं दिया जाता।
 


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Content Editor

Prachi Sharma

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