Smile please: ‘नानक दुखिया सब संसार, सो सुखिया जिस नाम आधार’

punjabkesari.in Sunday, Nov 27, 2022 - 10:42 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
 
Anmol Vachan: सब जानते हैं कि यह संसार दुखालय है, सुख-दुख का संगम स्थल है। होनी को भी सभी मानते हैं और प्रारब्ध में भी लगभग सभी जनों का विश्वास है, फिर भी दुख में हम नितांत परेशान, निराश, भयभीत और निराश हो जाते हैं। दुख की घड़िया हमें लम्बी प्रतीत होती हैं और हम अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठते हैं। दुख मानव जीवन का अकाट्य सत्य है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। सुख-दुख के इस कुचक्र में हम दुख से बचकर केवल सुख का ही रसास्वादन कर लें, यह संभव नहीं। हाथरस के संत तुलसी साहिब जी का कथन है कि जगत के सभी प्राणी किसी न किसी दुख से संतप्त हैं। केवल वही प्राणी सुखी है, जिसने किसी महापुरुष का आश्रय ले रखा है।

PunjabKesari Smile please

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

बैठे-बैठे मन में विचार आया कि अपने आस-पास ही एक नजर डाल लें और देखें कि लोग किस हाल में हैं। पड़ोस के पहले घर में श्री परमानंद जी रहते हैं। उनका सबसे छोटा लड़का रमेश जन्म से लुंज-पुंज, मांस का लोथड़ा-सा पैदा हुआ था। वह न उठ-बैठ सकता है, न बोल और सुन ही सकता है। शौच-पेशाब आदि नित्यकर्म, खिलाना-पिलाना, नहलाना-धुलाना सब मां-बाप को कराना पड़ता है। अब वह बारह वर्ष का हो गया है। वह कभी स्वस्थ और सामान्य नहीं हो सकेगा, ऐसे में माता-पिता और परिवार वालों की पीड़ा का अनुमान लगाना कठिन नहीं।

बगल वाले दूसरे घर में श्री रामानंद जी रहते हैं। पति-पत्नी दोनों अच्छे पढ़े-लिखे और धन-धान्य से भरपूर हैं। दोनों ही उच्च सरकारी पदों पर हैं। विवाह हुए 10-12 वर्ष बीत गए हैं लेकिन अभी तक संतान सुख से वंचित हैं। वे अपनी इस पीड़ा को भूलना भी चाहें तो लोग पूछ-पूछ कर उन्हें भूलने नहीं देते। अब वे करें क्या, इस पीड़ा से बचने का कोई उपाय भी तो नहीं है उनके पास।

PunjabKesari Smile please
पड़ोस के तीसरे घर में श्री सुखलाल जी रहते हैं। सेवानिवृत्ति में केवल दो वर्ष बचे हैं। घर में तीन बेटियां हैं जिनके हाथ पीले करने हैं। सबसे बड़ी बेटी के रिश्ते के लिए सुयोग्य वर की तलाश में भटकते-भटकते थक चुके हैं, लेकिन कोई संयोग नहीं बन पाया है। रात-दिन बस इसी चिंता में खोए रहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद क्या होगा ?

चौथे घर में श्री प्रेम सुशील जी रहते हैं। वे सबके साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं। उनका इकलौता बेटा पढ़ाई-लिखाई से विमुख होकर बुरी संगत में पड़ गया है। कई-कई बार घर से दो-दो दिन तक गायब रहता है। मोहल्ले, अड़ोस-पड़ोस वाले, मित्र-संबंधी परिवार वालों पर छींटाकशी करते हैं।

अगले घर में रहते हैं श्री दीनदयाल श्रीवास्तव जी। उनकी पत्नी कर्कशा है, इसलिए घर में दिन-रात महाभारत मचा रहता है। घर में विधवा मां है जो स्तन कैंसर के रोग से पीड़ित है। दीनदयाल जी ने अपनी माता की शल्य-चिकित्सा तो करवाई है लेकिन रोग से अभी मुक्ति नहीं मिली है। हर बीस दिन के अंतराल पर रेडियो-थैरेपी और कीमोथैरेपी के लिए उन्हें अस्पताल जाना पड़ता है। पैसा पानी की तरह बहा जा रहा है, मगर माता श्री की तबीयत ठीक होने का नाम नहीं लेती।

हमारे घर की पिछली गली में श्री श्यामसुंदर जी रहते हैं। उनकी दो लड़कियां और एक लड़का है। दस दिन पहले लड़के की एक सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत हो गई थी। वह बेंगलूर में आई.आई.टी. के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था। उनकी सारी उम्मीदों पर पानी तो फिर ही गया, जिंदगी भर यह दुख सताता रहेगा, सो अलग।

उसी गली में ही निर्मला नाम की एक विधवा रहती है। उसके तीन पुत्रियां एवं एक पुत्र है। चारों का विवाह हो चुका है। वैचारिक मतभेद के चलते सात साल पहले बेटा और बहू घर छोड़ कर चले गए थे। गत वर्ष लिवर की बीमारी के कारण पति का भी देहांत हो गया। श्रीमती निर्मला का निर्माण नगर में अपना आलीशान मकान है लेकिन अब बेटियों के पास रहने के लिए उसे विवश होना पड़ रहा है। वह कभी किसी बेटी के पास रहती है तो कभी किसी के पास। उससे बात करो तो अपना दुखड़ा सुनाते हुए उसकी रूलाई फूट पड़ती है।

PunjabKesari Smile please
इस प्रकार एक-एक करके मैंने सभी बीस पड़ोसियों के हालात का मोटे रूप से जायजा लिया और मन में विचार आया कि हर कोई अपने-अपने कर्मानुसार दुख-सुख भोग रहा है। सहसा श्री गुरु नानक देव जी की बाणी का स्मरण हो गया-‘नानक दुखिया सब संसार, सो सुखिया जिस नाम आधार।’

अपने छोटे-छोटे दुखों से जब मन दुखी हो जाता है, तो मनुष्य को अपने आस-पास चहुं ओर दुख के लहराते समुद्र को देख कर अपना निजी दुख छोटा प्रतीत होने लगता है और मन थोड़ी देर के लिए हल्का भी हो जाता है। अच्छी बात यह है कि दुख के चलते हमारे मन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव जागृत हो उठता है। संतप्रवर कबीरदास जी का कथन है कि हम ईश्वर को केवल दुख में ही याद करते हैं। यदि सुख में भी हम ईश्वर का स्मरण करें तो दुख की ज्वाला से बचे रह सकते हैं:
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय॥


ऐसा नहीं कि खुशी केवल बड़ी चीजों और अधिक संसाधनों से मिलती है। व्यक्ति चाहे तो जीवन को सरल बनाकर, भौतिक पदार्थों को सीमित करके भी प्रसन्न रह सकता है। कच्चे मकान में रह कर, बकरी का दूध पीकर और मामूली सी धोती पहनकर महात्मा गांधी ने देश को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने कम संसाधनों से खुद की शक्ति को पहचाना और जीवन भर प्रसन्नता ही बांटते रहे। गांधी जी के सिद्धांत आज भी जनमानस को प्रेरित करते हैं।  

PunjabKesari kundli

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News