श्रीमद्भगवद्गीताः दुर्योधन अपनी विजय के प्रति था आश्वस्त

punjabkesari.in Sunday, Feb 23, 2020 - 03:20 PM (IST)

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सनातन धर्म में ऐसे बहुत से ग्रंथ शामिल हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर परेशानी का सामना कर सकता है। कहते हैं कि अगर किसी को किसी समस्या का समादान नहीं मिल रहा तो श्रीमद्भगवद्गीता का अध्यन करने से उसे उसकी हर परेशानी का हल मिल जाएगा। गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से ही जीवों के उद्धार के लिए वो उपदेश दिए थे। जिन्हें आज के समय इंसान भूल चुका है, लेकिन कहीं न कहीं ये भगवद् श्लोक व्यक्ति का उद्धार कर सकेत हैं।  
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श्लोकः भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय:।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।
अनुवाद :
मेरी सेना में स्वयं आप, भीष्म,कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं जो युद्ध में सदैव विजयी रहे हैं।
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तात्पर्य : दुर्योधन उन अद्वितीय युद्धवीरों का उल्लेख करता है जो सदैव विजयी होते रहे हैं। विकर्ण दुर्योधन का भाई है, अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र है और सौमदत्ति या भूरिश्रवा बाहलीकों के राजा का पुत्र है। कर्ण अर्जुन का आधा भाई है क्योंकि वह कुंती के गर्भ से राजा पांडु के साथ विवाहित होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था। कृपाचार्य की जुड़वां बहन द्रोणाचार्य को ब्याही थी।
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श्लोकः अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:।
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा:।।
अनुवाद :
ऐसे अन्य अनेक वीर भी हैं जो मेरे लिए अपना जीवन त्याग करने के लिए उद्यत हैं। वे विविध प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं और युद्धविद्या में निपुण हैं।
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तात्पर्य : जहां तक अन्यों का तथा जयद्रथ, कृतवर्मा तथा शल्य का संबंध है वे सब दुर्योधन के लिए अपने प्राणों की आहूति देने के लिए तैयार रहते थे। दूसरे शब्दों में यह पूर्वनिश्चित है कि वे अब पापी दुर्योधन के दल में सम्मिलित होने के कारण कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे जाएंगे। नि:संदेह अपने मित्रों की संयुक्त शक्ति के कारण दुर्योधन अपनी विजय के प्रति आश्वस्त था।  


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