भगवान जगन्नाथ की तर्ज पर यहां रात्रि को भ्रमण पर निकलते हैं बाला जी, 450 साल पुरानी है परंपरा
punjabkesari.in Friday, Sep 30, 2022 - 11:59 AM (IST)
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15 दिनों का यह महोत्सव मां शक्ति के विराजित होते ही हो जाता है शुरू
बाला जी महाराज की भक्ति में डूब जाते हैं भक्त
दर्शन देने मंदिर से बाहर आते हैं भगवान
बालाजी महाराज मंदिर से बाहर निकल देते हैं दर्शन
नगर भ्रमण को निकलते हैं भगवान
450 साल से चली आ रही परंपरा
भारत देश की बात तो हमारे देश में न केवल रहस्यमयी स्थान हैं बल्कि यहां कई ऐसी यात्राएं होती हैं जिनसे जुड़े तथ्य व रहस्य बेहद दिलचस्प व हैरानजनक माने जाते हैं। आप में से बहुत से लोग भारत देश में होने वाली जगन्नाथ याात्रा से रूबरू होंगे, जो प्रत्येक वर्ष ओड़िसा के पुरी में लाखों लोगों की तादाद में पूरे पुरी शहर में निकाली जाती है। बताया जाता है इस जगन्नाथ यात्रा में शामिल होने के लिए भक्त न केवल देश के अलग हिस्सों से बल्कि विदेशों से भी भगवान जगन्नाथ के भक्त देश की सबसे बड़ी व भव्य यात्रा में शामिल होने आते हैं।
अब सोच रहे होंगे कि हम यकीनन आपको इससे जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं परंतु नहीं आपका सोचना इस बार थोड़ा गलता है क्योंकि हम आपको बताने जा रहे हैं मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में होने वाली लगभग 450 वर्ष पुरानी एक परंपरा के बारे में, जिसका संबंध भगवान बाला जी के साथ-साथ जगन्नाथ से भी है।
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दरअसल हम बात कर रहे हैं कि बुरहानपुर में होने वाली बाला जी की यात्रा की, जिसके बारे में कहा जाता है कि बुरहानपुर में भगवान जगन्नाथ की तर्ज पर 450 साल से भगवान बालाजी का रथ निकल रहा है जो रातभर नगर में भ्रमण करता है। बता दें बुरहानपर में श्री बड़े बाला जी महाराज का मंदिर है जहां बाला जी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण मुगल स्थापत्य शैली में करवाया गया था, जहां बाला जी की प्राचीन प्रतिमा विराजित है।
यहां को लोक मान्यताओं के अनुसार भारत में केवल बुरहानपुर ही एक ऐसा शहर है जहां 15 दिनों तक बाला जी महाराज रात्रि में रथ में बैठ अलग-अलग रूपों में सवारी पर निकलते हैं और भक्तों को उनके द्वार पर पंहुचकर दर्शन देते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें रथ पर सवार होकर बालाजी महाराज रथ पर अश्विनी मास की प्रतिप्रदा से निकलते हैं जिसके बाद बालाजी महाराज 15 दिनों तक नगर भ्रमण करते हैं। मान्यता है इस प्राचीन परंपरा को अब 10 वीं पीढी परंपरा निभा रही है।