Sharad Purnima Rasleela: शरद पूर्णिमा को हुई थी पहली रासलीला, कुछ ऐसी थी ये रात
punjabkesari.in Sunday, Oct 05, 2025 - 02:00 PM (IST)

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Sharad Purnima and Rasleela: हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा को वर्ष का सबसे पावन और चमत्कारी दिन माना गया है। यह वह रात्रि है जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ उदित होता है और अमृत वर्षा करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन की भूमि पर रासलीला रचाई, जिसे “महारास” कहा जाता है।
Importance of Sharad Purnima in the scriptures शास्त्रों में शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ प्रकट होता है। इसी दिन चंद्र किरणों में अमृत तत्व प्रवाहित होता है, जिसे पवित्र और औषधीय माना गया है। भक्तजन इस दिन खीर का व्रत रखते हैं और चंद्रमा की रोशनी में उसे रखकर सेवन करते हैं।
The connection between Sharad Purnima and Raasleela शरद पूर्णिमा और रासलीला का संबंध
भागवत महापुराण के 10वें स्कंध में वर्णित है कि जब शरद ऋतु की पूर्णिमा आई, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई। उसकी धुन सुनकर समस्त गोपियां अपने घर-परिवार छोड़कर नंदलाल की ओर दौड़ीं। वृंदावन के निधिवन क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और सभी गोपियों के साथ मिलकर रास रचाया। इसे महारास कहा गया, क्योंकि इस रात भगवान ने अपनी योगमाया से प्रत्येक गोपी के साथ व्यक्तिगत रूप से नृत्य किया।
The spiritual secret of Sharad Purnima and Raasleela शरद पूर्णिमा और रासलीला का आध्यात्मिक रहस्य
रासलीला केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा की रात यह संदेश देती है कि जब भक्ति सच्ची हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्तों के साथ लीलाएं करते हैं। यह रात अनंत प्रेम, समर्पण और भक्त-भगवान की एकता का प्रतीक मानी जाती है।
शरद पूर्णिमा और रासलीला का संबंध अद्वितीय और चमत्कारी है। जहां एक ओर चंद्रमा इस रात अमृत की वर्षा करता है, वहीं दूसरी ओर भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर प्रेम और भक्ति की अमृत वर्षा करते हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा को महारास की रात कहा जाता है और वृंदावन में इसका महत्व सबसे अधिक है।