Shaniwar Ke Upay: अगर आज करेंगे ये काम, शनि की क्रूर दृष्टि से होगा बचाव
punjabkesari.in Saturday, Jun 14, 2025 - 06:43 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Shaniwar Ke Upay: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव को पीड़ा देने वाला और क्रूर ग्रह माना गया है लेकिन असल में ऐसा सच नहीं है। शनिदेव न्याय के देवता हैं, जो जैसा कर्म करता है, वो उसी हिसाब से उसका फल देते हैं। शनिदेव को कलियुग का न्यायाधिकारी कहते हैं। जो भी व्यक्ति बुरे कर्म करता है वो शनिदेव की क्रूर दृष्टि से बच नहीं पाता है। उसी के साथ अगर वे किसी व्यक्ति से प्रसन्न हो जाएं तो उसका जीवन खुशियों से भर देते हैं। तो आइए जानते हैं, कौन से उपाय करने से शनि देव भक्तों की झोलियां खुशियों से भर देते हैं।
Saturday tricks शनिवार के टोटके
शनि ग्रह की क्रूर दृष्टि से बचने के लिए आज के दिन काले कुत्ते और काली गाय को रोटी खिलाएं। काली चिड़िया को दाना खिलाएं।
संभव हो तो पिंजरे से काली चिड़िया को आजाद करें। ऐसा करने से बिगड़े काम बन जाते हैं और रुके काम पूरे होने के योग बनने लगते हैं।
शनि देव को खुश करने के लिए आज के दिन शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। जैसे कि साबुत उड़द, लोहा, तेल, तिल के बीज, काले कपड़े आदि।
अगर आपकी कुंडली में शनि का प्रकोप चल रहा है तो उससे बचने या उसके प्रभाव को कम करने के लिए शनिवार के दिन सूर्यास्त के समय काले घोड़े की नाल या फिर नाव की कील से बनी अंगूठी को अपनी मध्यम उंगली में धारण करें।
अगर आपके पास पैसा नहीं टिकता है तो मंगलवार या शनिवार के दिन एक पीपल के पत्ते पर चंदन से मां लक्ष्मी का नाम लिखें। उसके बाद इस पत्ते को घर के मंदिर में रख दें। एक सप्ताह तक मंदिर में ही इसे रहने दें और अगले शनिवार को मंदिर से हटा कर इसे घर की तिजोरी में रख दें या फिर इसे पर्स में भी रखा जा सकता है।
नौकरी में प्रमोशन पाने के लिए शं शनैश्चराय नमः का जाप करते हुए काले कोयले को जल में प्रवाहित कर दें।
शनि देव को शमी का पौधा बहुत प्रिय है इसलिए इस पेड़ की पूजा और देख-रेख करने से जीवन में शांति और खुशहाली बनी रहती है।
अगर इन उपायों को नहीं कर सकते तो इन मंत्रों का जाप करके ही शनि देव को प्रसन्न किया जा सकता है-
Shani Mantra शनि मंत्र:
ऊं प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
ओम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: भूर्भुव: स्व: ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न: औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥