Shani Jayanti 2019: जानें, आपके जीवन में कौनसा अहम ROLE निभाते हैं शनि देव

punjabkesari.in Sunday, Jun 02, 2019 - 03:17 PM (IST)

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पौराणिक ग्रंथों के शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है। तो वहीं कुछ लोग इन्हें कर्मफल दाता भी कहते हैं क्योंकि शनि देव हमेशा जातक को उसके कर्मो के हिसाब से फल देते हैं। कहा जाता है कि केवल सूर्य देव के पुत्र शनि देव ऐसे देव हैं जो प्राणी मात्र को जीवन देने वाले माने जाते हैं। किंतु कहा जाता है कि सूर्य और शनि दोनों ही पिता पुत्र होने के बाद भी सूर्य प्रकाश से भरपूर व गौर वर्ण है और शनि प्रकाशवान सूर्य के पुत्र होने पर भी काले व अंधकारमय है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि देव की हमारी यानि मानव जीवन की दिनचर्या के साथ गहरा संबंध होता है। लेकिन सवाल ये है कि कैसे तो चलिए आपको बताते हैं आपके इस प्रश्न का जवाब। शास्त्रों में सूर्य को जीवन और शनि को मृत्यु का कारक कहा गया है। सूर्य उत्तरायण में बली होता है तो शनि दक्षिणायन में बली होता है।  सूर्य मेष राशि में उच्च और तुला राशि में नीच होता है। हर व्यक्ति पिता-पुत्र से यानि सूर्य और शनि देव की कृपा पाने के विभिन्न तरह से इनकी पूजा और उपाय करता है। कहा जाता है जैसे सूर्य देव से वयक्ति को रोज़ जीवन प्राण प्राप्त होता है, वहीं शनि देव उसकी दैनिक दिनचर्या के अनुरूप अच्छे बूरे कर्मों का फल देते हैं।

सूर्य और शनि के संबंध में ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि जिस राशि में सूर्य उच्च फल प्रदान करता है, उसी राशि में शनि नीच का हो जाता है, और सूर्य जिस राशि में नीच होता है उसी राशि में शनि उच्च फल प्रदान करता है। कहने का मतलब है कि दोनों पिता-पुत्र हमेशा एक दूसरे के विपरीत ही कार्य करते हैं।

शनि और सूर्य
कहा जाता है कि शनि सूर्य से सबसे अधिक दूर स्थित हैं, जिस कारण सूर्य का प्रकाश शनि तक नहीं पहुंच पाता। यही कारण शनि देव का रंग प्रकाश हीनता के कारण काला है। सूर्य आत्मकारक, प्रभावशाली, तेजस्वी ग्रह है, इसलिए प्रकृति का नियम है कि अंधकार और प्रकाश दोनों एक साथ एक स्थान पर नहीं रह सकते।
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अगर किसी जातक की कुंडली में सूर्य और शनि के युति का योग बन रहा हो, जिसमें सूर्य  शनि राशि में या शनि सूर्य राशि में हो तो ऐसे में सरकारी कामों में हमेशा बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक को समय-समय पर उच्च पद और उच्चाधिकारियों से संबंध मधुर बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। कहने का भाव है कि यह योग व्यक्ति के जीवन को संघर्षमय बनाता है। इसके अलावा अगर शनि-शनि समसप्तक स्थिति में हो, तो पिता-पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते हैं। ऐसे हालातों में पिता-पुत्र को एक छत के नीचे काम नहीं करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है इस स्थिति में शनि और सूर्य दोनों की ही उपासना करनी  चाहिए। सूर्य की कृपा के लिए नियमित 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने के बाद 11 बार गायत्री मंत्र बोलते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। शनि की कृपा के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर उसके सामने बैठकर शनि मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
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Jyoti

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