आखिर कैसे, यमराज से वापिस मांग लाई थी सावित्री अपने पति के प्राण

punjabkesari.in Sunday, Feb 04, 2018 - 02:09 PM (IST)

महाभारत एक एेसा धार्मिक ग्रंथ है जिसमें अनकों पौराणिक पात्रों के बारे में पता लगता है। इसमें कहानियों के एेसे बहुत से संग्रह है। उन्हीं में से एक कहानी है सावित्री और सत्यवान की, जिनका सर्वप्रथम वर्णन महाभारत के वनपर्व में मिलता है। ये उस समय की बात है जब युधिष्ठर, मार्कण्डेय मुनि से पूछते हैं कि क्या द्रोपदी के समान कोई अन्य स्त्री भी पावन पवित्र हो सकती है, जो पैदा तो राजकुल में हुई है पर अपने पतिव्रत धर्म को निभाने के लिए जंगल-जंगल भटक रही है। तब मुनि ने उन्हें बताया कि इससे पूर्व भी सावित्री नामक स्त्री बहुत कठिन पतिव्रता का पालन कर चुकी है। 


इसकी कथा कुछ इस प्रकार इस तरह है-

मद्रदेश के अश्वपति नाम का एक बड़ा ही धार्मिक राजा था। जिसकी पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री जब विवाह योग्य हो गई। तब महाराज उसके विवाह के लिए बहुत चिंतित थे। उन्होंने सावित्री से कहा बेटी अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो, इसलिए स्वयं ही अपने योग्य वर चुनकर उससे विवाह कर लो। उन्होंने सावित्री को बतात हुए कहा कि धर्मशास्त्र की मान्यता अनुसार विवाह योग्य हो जाने पर जो पिता कन्यादान नहीं करता, वह पिता निंदनीय है। ऋतुकाल में जो स्त्री से समागम नहीं करता वह पति निंदा का पात्र है। पति के मर जाने पर उस विधवा माता का जो पालन नहीं करता । वह पुत्र निंदनीय है।


ये सब सुनकर सावित्री शीघ्र ही वर की खोज करने के लिए मिलक पड़ी। वह राजर्षियों के रमणीय तपोवन में गई। कुछ दिन तक वह वर की तलाश में घुमती रही। एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए देवर्षि से बातें कर रहे थे। उसी समय मंत्रियों के सहित सावित्री समस्त वापस लौटी। तब राजा की सभा में नारद जी भी उपस्थित थे। नारदजी ने जब राजकुमारी के बारे में राजा से पूछा तो राजा ने कहा कि वे अपने वर की तलाश में गई हैं। जब राजकुमारी दरबार पहुंची तो और राजा ने उनसे वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र जो जंगल में पले-बढ़े हैं उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है।


उनका नाम सत्यवान है। तब नारदमुनि बोले राजेंद्र ये तो बहुत खेद की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है तब राजा ने पूछा वो क्या तो उन्होंने कहा जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु कम है। वह सिर्फ एक वर्ष के बाद मरने वाला है। उसके बाद वह अपना देह त्याग देगा। तब सावित्री ने कहा पिताजी कन्यादान एक बार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया है। मैं उसी से विवाह करूंगी आप उसे मेरा कन्यादान कर दें। उसके बाद सावित्री के द्वारा चुने हुए वर सत्यवान से धुमधाम और पूरे विधि-विधान से विवाह करवा दिया गया।


सत्यवान व सावित्री के विवाह को बहुत समय बीत गया। जिस दिन सत्यवान मृत्यु होने वाली थी वह करीब आ चुका था। सावित्री एक-एक दिन गिनती रहती थी। उसके दिल में नारद जी का वचन सदा ही बना रहता था। जब उसने देखा कि अब इन्हें चौथे दिन मरना है। उसने तीन दिन व्रत धारण किया। जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ आपके चलूंगी। तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो। जंगल का रास्ता बहुत कठिन और परेशानियों भरा है। इसलिए आप यहीं रहें। लेकिन सावित्री नहीं मानी उसने जिद पकड़ ली और सत्यवान के साथ जंगल की ओर चल दी।


सत्यवान जब लकड़ी काटने लगा तो अचानक उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। वह सावित्री से बोला मैं स्वस्थ महसूस नही कर रहा। सावित्री मुझमें बैठने की भी हिम्मत नहीं रही। तब सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। फिर वह नारद जी की बात याद करके दिन व समय का विचार करने लगी। इतने में ही उसे वहां एक बहुत भयानक पुरुष दिखाई दिया। जिसके हाथ में पाश था। वे यमराज थे। उन्होंने सावित्री से कहा तू पतिव्रता स्त्री है। इसलिए मैं तुझसे संभाषण कर लूंगा। सावित्री ने कहा आप कौन है तब उन्होंने बताया कि मैं यमराज हूं। इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी। तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता। तुम और कोई मनचाहा वर मांग लो।


तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर की आंखे मांग ली। यमराज ने कहा तथास्तु लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए। उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों। यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो। तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। यमराज ने कहा तथास्तु। यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढने लगे। सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं। आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है। तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया। उसके बाद सावित्री सत्यवान के शव के पास पहुंची और थोड़ी ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई।
 


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