सरला नारायण सिंह, मां का सपना पूरा करने के लिए बनीं कथक गुरु
punjabkesari.in Saturday, Jun 08, 2024 - 11:01 AM (IST)
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काशी (बनारस ) नगरी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। देवों के देव महादेव ने अपने त्रिशूल पर इस नगरी को बसाया है। शिव अविनाशी है। काशी साहित्य संगीत और कला की भी नगरी है। यहां समय-समय पर अनेक दिग्गज कलाकार हुए जैसे सितारा देवी, अन्नपूर्णा देवी अलखनंदा देवी, पद्मा खन्ना आदि। मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म इसी पावन नगरी में हुआ। मेरे पिताजी एक प्रतिष्ठित व्यवसाई थे। घर में संगीत का कोई माहौल नहीं था। मां बताती थी कि जब मैं तीन या चार वर्ष की थी रेडियों में शास्त्रीय संगीत बजता था, वो संगीत मैं बहुत ध्यान से सुनती थी और नृत्य करती थी।
जब मेरी स्कूल की शिक्षा प्रारम्भ हुई तो स्कूल के प्रोग्राम में मैं नृत्य में भाग लिया करती थी। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है तब मैं अग्रसेन स्कूल में कक्षा 4 की छात्रा थी। बाल दिवस (14 नवम्बर) पर स्कूल की तरफ से दुर्गा नृत्य में मैंने वीर रस प्रधान नृत्य किया था और मुझे और मेरे स्कूल को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। तभी से मेरी कथक नृत्य की शिक्षा आरंभ हुई पर उस दौर में लड़कियों (महिलाओं) के लिए संगीत और नृत्य सीखना बड़ा कठिन कार्य था परंतु बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद मेरे साथ सदैव रहा। मेरे माता-पिता धार्मिक एवं आधुनिक विचारधारा के थे। इसी वजह से मेरी नृत्य की शिक्षा में अड़चने कम आई। मेरे परम आदरणीय गुरुजी बनारस घराने के प्रतिष्ठित कलाकर पंडित चंद्रशेखर मिश्रा जी ने मुझे (1972) में गुरु शिष्य परम्परा के अनुसार गंडा बांध कर मुझे अपनी शिष्या के रूप में स्वीकार किया और आज भी अनवरत उनका सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त होता है।
बचपन से ही मैं आध्यात्मिक एवं धार्मिक विचारों की रही हूं। मुझे बाबा विश्वनाथ के साथ ही भगवान कृष्ण की भक्ति करने में बहुत आनंद आता है। मेरे गुरुजी ने मुझे बनारस घराने का तांडव प्रधान नृत्य के साथ-साथ कथक के भाव एवं बारीकियों को भी बहुत ही सुंदर ढंग से सिखाया है।
कथक नृत्य में मैं गोल्ड मेडलिस्ट हूं। संगीत गायन में मैंने प्रभाकर किया है। नृत्य के अलावा मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिस्ट्री ऑनर्स में स्नातक एवं काशी विद्या पीठ से मास्टर्स डिग्री के साथ ही बीएड भी किया है।
मां का सपना था कि वो मुझे नृत्य करते हुऐ बडे़ मंचों पर देखें। मां के सपनों को साकार करने के लिऐ मैं कथक नृत्य की शिक्षा के साथ-साथ कथक की डिग्री एवं विभिन्न प्रतियगिताओ में भी भाग लेती रही। इनमें कुछ प्रमुख प्रतियोगिता-
1972 भारत भारती परिषद द्वारा कथक नृत्य प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार विशेष योग्यता के साथ अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता (स्वर्ण जयंती समारोह ) इलाहाबाद 1976 में प्रथम श्रेणी में पुरस्कार जीता।
1977 में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा संभागीय संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान एवं प्रादेशिक में तृतीय स्थान प्राप्त किया।
1978 में प्रथम पुरस्कार हासिल किया।
1979 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लगातार पांच घण्टे तक कथक नृत्य की प्रस्तुति करने पर तत्कालीन वीसी डा. हरिनारायण द्वारा सम्मानित किया गया।
1980 में हमारे काशी के विश्व विख्यात तबला सम्राट स्व. पंडित शामता प्रसाद मिश्र जी द्वारा संगीत कला केंद्र से मान पत्र सम्मान प्राप्त हुआ।
आकाश वाणी वाराणसी में भी समय-समय पर मुझे संगीत चर्चा के लिए बुलाया जाता था।
1982 में ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस इलाहाबाद
1985 में हजारीबाग संगीत महोत्सव पटना, बोकारो संगीत महोत्सव इत्यादि में कथक प्रस्तुति के लिऐ सम्मानित किया गया। इनके साथ ही मुझे वाराणसी, इलाहबाद, लखनऊ, पटना, सोनपुर, कटनी, कोलकाता इत्यादि शहरों में भी अपनी कला की प्रस्तुति का अवसर मिला। 1997 में सारनाथ बुद्ध महोत्सव में नृत्य नाटिका 1999 में अशोक मिशन सोसाइटी में नृत्य नाटिका की प्रस्तुति।
मैं स्वयं को धन्य मानती हूं कि मेरे गुरुजी के सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। कुछ प्रमुख चीजे जैसे द्रोपदी चीर हरण, कालिया मर्दन, अहिल्या उद्धार, रास परण, शिव तांडव परण, थाली नृत्य, इत्यादि। बनारस घराना के प्रसिद्ध कलाकर जैसे स्व अलकनंदा देवी जी का भाव नृत्य सीखने को मिला। स्व पांडे महाराज जी का आशीर्वाद मिला। मैंने आदरणीय पंडित गुदई महाराज जी एवं पंडित किशन महाराज जी के घर पर गणेश हॉल में अपने कला की प्रस्तुति दी और आप दोनों का आशीर्वाद मिला। बनारस के प्रख्यात तबला वादक पंडित कुमार लाल मिश्र जी के साथ बहुत ही उच्चकोटि के कार्यक्रम में मेरे कथक की प्रस्तुति हुई। मैं डी.पी.एस काशी में भी 2022 तक कथक नृत्य शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी। बाबा विश्वनाथ की कृपा से 2012 में मुझे कथक गुरु का सम्मान प्राप्त हुआ।
भोलेनाथ की कृपा से मेरा विवाह भी बनारस में ही हुआ। मेरे सुपुत्र राघवेंद्र संगीत में क्लासिकल सितार एवं गिटार के आर्टिस्ट हैं। मेरे पास भारतीय स्टूडेंट्स के अलावा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, इसराइल, जापान, कोरिया इत्यादि विदेशी स्टूडेंट्स भी सीखने के लिए आते रहते हैं।
मेरे लिए नृत्य आराधना है। मैं स्वयं को शून्य मानती हूं इसलिए हमेशा सीखने के लिऐ तत्पर रहती हूं। मैं अपने विधार्थियों से यही कहना चाहती हूं कि कोई भी कला हो जब तक आप सच्चे मन से समर्पित होकर नहीं सीखोगे आपके मन में गुरु के प्रति आदर भाव नहीं होगा आप प्रगति के रास्ते पर दूर तक नहीं जा सकोगे।
कथक नृत्यांगना
बनारस घराना
सरला नारायण सिंह