यहां जानें, स्वास्तिक का सूर्य देव और श्री हरि विष्णु से क्या है संबंध ?

punjabkesari.in Sunday, May 19, 2019 - 11:08 AM (IST)

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हिंदू धर्म में ऐेसे कई चिन्ह आदि बताए गए हैं जो बहुत शुभ होते हैं। जिनमें से एक है स्वास्तिक का चिन्ह। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसे घर आदि में लगाना बहुत शुभ होता। इससे घर में आने वाले नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। तो आइए जानते हैं शास्त्रों में दिए स्वास्तिक से जुड़े कुछ खास व रोचक तथ्यों के बारे में-
PunjabKesari, Swastik, स्वास्तिक
भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक का बहुत महत्व माना गया है। कहते हैं कि देवों में सर्वप्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश की उपासना और धन, वैभव व ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा स्वास्तिक के बिना अधूरी है। किसी भी देवता या देवियों की पूजा के पहले कई प्रकार के चौक आंगन व पूजास्थल पर बनाए जाते हैं जिसके साथ स्वास्तिक बनाने की पर परा है।

स्वास्तिक को सूर्य और विष्णु का प्रतीक माना जाता है। सविन्त सूत्र के अनुसार, इसे मनोवांछित फलदायक, संपूर्ण जगत का कल्याण करने वाला और देवताओं को अमरत्व प्रदान करने वाला कहा गया है। माना जाता है कि स्वास्तिक ब्रह्मांड का प्रतीक है। इसके मध्य भाग को विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्मा जी के चार मुख और चारों हाथों को चार वेदों के रूप में माना गया है। देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिन्ह ही स्वास्तिक के आकार का होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ माना गया है।
PunjabKesari, Surya Dev, सूर्य देव
स्वास्तिक में स्वस्ति का अर्थ है-क्षेम, मंगल इत्यादि प्रकार की शुभता एवं (क) अर्थात कारक या करने वाला। मान्यता है कि धर्मग्रंथ श्रुति द्वारा प्रतिपादित यह युक्तिसंगत भी है। श्रुति, अनुभूति तथा युक्ति इन तीनों में इसका एक समान वर्णन किया गया है। यह प्रयागराज में होने वाले संगम के समान है।

दिशाएं चार होती हैं, खड़ी तथा सीधी रेखा खींच कर जो धन चिन्ह  जैसा आकार बनता है, यह आकार चारों दिशाओं का द्योतक है। इसलिए  यह देवताओं का शुभ करने वाला है और इसके गति सिद्ध चिन्ह को स्वास्तिक कहा गया है।

सात समुद्र पार
स्वास्तिक को भारत में ही नहीं, विश्व के कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में पहचाना जाता है। यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमरीका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वास्तिक का प्रचलन है।
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स्वास्तिक की रेखाओं को कुछ विद्वान अग्रि उत्पन्न करने वाली अश्वत्थ (पीपल) की दो लकड़ियां मानते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग स्वास्तिक को निर्विवाद रूप से काष्ठ दंडों का प्रतीक मानते थे। यज्ञ में अग्रि मंथन के कारण इसे प्रकाश का भी प्रतीक माना जाता है। लोगों का मानना है कि स्वास्तिक सूर्य का प्रतीक है। जैन धर्मावल बी अक्षत पूजा के समय स्वास्तिक चिन्ह बनाकर तीन बिंदु बनाते हैं।   


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Jyoti

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