Radha Krishna Story: जानें, आखिर क्यों श्री कृष्ण ने छोड़ दिया था बांसुरी बजाना !
punjabkesari.in Monday, Sep 08, 2025 - 06:02 AM (IST)

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Radha Krishna Story: इस संसार में जब भी प्रेम की बात होती है, तो सबसे पहला नाम जो हर एक की ज़ुबान पर आता है, वो है राधे कृष्ण। राधा कृष्ण का नाम सदैव एक साथ लिया जाता है। जब भी भगवान श्री कृष्ण का स्मरण किया जाता है तो कान्हा के होंठो पर सजी बांसुरी और बगल में खड़ी लाडली जी की छवि अपने आप ही मन में उभर आती है। श्री कृष्ण की ये वहीं बांसुरी जिसकी एक धुन सुनकर गोपियां और राधा सब कुछ भूलकर उनकी ओर खिंची चली आती थी। जहां इंसान तो क्या पशु भी इस मंत्रमुग्ध कर देने वाली धुन में खो जाया करते थें। भगवान श्री कृष्ण सदैव हर क्षण अपने साथ बांसुरी रखते थें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी आया था जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सबसे प्रिय इस बांसुरी को हमेशा के लिए अपने से दूर कर दिया था? धार्मिक ग्रंथों में भी इसका वर्णन मिलता है जिसमें बताया गया है कि एक समय ऐसा भी आया था जब भगवान श्री कृष्ण ने खुद से अपनी बांसुरी को तोड़ दिया था? तो आइए जानते हैं आखिर क्या थी इसके पीछे की कहानी और क्यों किया कान्हा ने अपनी सबसे प्रिय वस्तु को दूर।
कहते हैं श्री कृष्ण राधा रानी से सबसे पहली बार दूर तब हुए जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को मथुरा में आमंत्रित किया था। कहते हैं कि मथुरा जाने से पहले श्याम ने राधा से मुलाकात की, श्री राधा तो कान्हा के मन की हर बात जानती थी, कान्हा ने राधा से वादा किया की वे वापस आएंगे और अलविदा कहा और चले गए। लेकिन श्री कृष्ण वापस न आ सकें। दूसरी ओर रुक्मणी ने कृष्ण जी को पाने के लिए भी बहुत परिश्रम किए। वहीं कान्हा के जाने का बाद राधा क की ज़िदगी भी पूरी तरह से बदल गई, राधा की शादी एक यादव परिवार में हो गई। लेकिन इसके बाद भी राधा का प्रेम कान्हा के लिए अटूट था। राधा रानी जब आखिरी बार अपने कान्हा को मिलने द्वारका आई तो उन्होंने वहां आकर कृष्ण के रुक्मणी और सत्यभामा के साथ विवाह के बारे में जाना।
भगवान कृष्ण ने जब श्री राधा को देखा तो वे बहुत खुश हुए। दोनों ने मन ही मन काफी देर तक एक दूसरे से बात करते रहें। कृष्ण की नगरी द्वारका में राधा जी को कोई नहीं जानता था। राधा के अनुरोध पर कान्हा ने उन्हें एक देविका के रूप में नियुक्त किया था। राधा रानी महल में रहने के दौरान अपने प्रियतम कृष्ण के दर्शन कर लेती थी। लेकिन कहते हैं कि वे महल में रहकर अपने कान्हा के साथ आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थी। इसलिए उन्होंने महल से दूर जाने का निर्णय लिया। कहते हैं महल से जाने के बाद उन्हें खुद नहीं पता था कि वे कहा जा रही है। हालांकि भगवान श्री कृष्ण सब कुछ जानते थें। समय के चलते हुए राधा रानी अकेली और कमज़ोर हो गई। ऐसे आखिरी समय में भगवान श्री कृष्ण उनके सामने आ गए।
उन्होंने जब राधा से कुछ मांगने को कहा तो राधा रानी ने आखिरी बार अपने कान्हा को बांसुरी बजाते हुए देखने की इच्छा जताई। कहते हैं श्री कृष्ण ने तब तक बांसुरी बजाई जब तक राधा रानी कृष्ण ने विलीन नहीं हो गई। अपने प्रियतम की बांसुरी की धुन सुनते सुनते राधा ने अपने शरीर को त्याग दिया। कृष्ण भली-भांति जानते थे कि उनका और राधा का प्रेम सदैव अमर रहेगा, फिर भी राधा के वियोग को वह सहन नहीं कर पाए। इसी गहरे दुःख में उन्होंने अपनी बांसुरी तोड़कर झाड़ियों में फेंक दी। कहा जाता है कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने जीवन भर न तो बांसुरी छुई और न ही किसी अन्य वाद्य यंत्र को बजाया।