Putrada Ekadashi- मनचाही संतान प्राप्ति के लिए बेहद खास है पुत्रदा एकादशी का व्रत जानें, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

punjabkesari.in Wednesday, Aug 14, 2024 - 02:13 PM (IST)

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Putrada Ekadashi 2024- हिंदू धर्म में जिस प्रकार सावन का माह बेहद पवित्र माना जाता है। ठीक उसी तरह इस माह में पड़ने वाले व्रत और त्योहार भी खास माने जाते है। इस महीने के प्रमुख त्योहारों में से एक है श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत। ये व्रत हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि वाले दिन रखा जाता है। इसे पवित्रा एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान को सुखी जीवन की प्राप्ति होती है और जो निसंतान दंपत्ति इस व्रत को पूरी आस्था और सच्चे मन से रखता है उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ये ही नहीं इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होने की मान्यता है। साथ ही पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है। हम आपको बताएंगे पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व तो आईए जानते हैं-

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पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त- हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट से प्रारंभ होगी और इस तिथि का समापन 16 अगस्त को सुबह 9 बजकर 39 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत 16 अगस्त शुक्रवार को रखा जाएगा।
 

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सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले व्रती को उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में यानी सुबह 04 बजकर 24 मिनट से सुबह 05 बजकर 08 मिनट के बीच स्नान आदि से निवृत हो जाना चाहिए। उसके बाद व्रत और पूजा का संकल्प करके ही व्रत रखना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा आप सूर्योदय के बाद से कर सकते हैं।

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इसके अलावा इस व्रत को करने वाले व्रती को दशमी तिथि से ही सात्विक आहार खाना चाहिए और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन भी करना चाहिए।

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पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि
व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान विष्‍णु का स्‍मरण करें।
फिर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें।
घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
अब भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं।
जैसा कि सब जानते हैं विष्णु जी को तुलसी बेहद प्रिय है, ऐसे में इनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करना चाहिए।
श्री हरि विष्‍णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत पूजा करें और आरती उतारें।
पूरे दिन निराहार रहें।
शाम के समय पूजा कर कथा सुनने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
रात्रि के समय जागरण करते हुए भजन-कीर्तन करें।
अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और उनको अपनी श्रद्धा के अनुसार दान दें।
अंत में खुद भी भोजन ग्रहण कर व्रत खोलें।
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करने से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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