महाबलीपुरम के शोर मंदिर पहुंचे Pm Modi और Xi Jinping, जानिए इसकी खासियत

punjabkesari.in Saturday, Oct 12, 2019 - 12:51 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
बीते दिन भारत के प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शुक्रवार को तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर मामल्लपुरम यानि महाबलीपुरम में मुलाकात हुई। कुछ वर्षों में दोनों के बीच जहां द्विपक्षीय मुलाकात हुई हैं, वे प्रसिद्ध सांस्कृतिक स्थल रहे हैं और इन स्थानों का चीन और भारत में हजारों साल पुराना जुड़ाव रहा है। इस बार इनकी मुलाकात के लिए महाबलीपुरम को चुना गया जहां दोनों ने खास मुद्दों पर बात भी की। इसके साथ ही पी.एम मोदी व शी जिनपिंग महाबलीपुरम के अति प्राचीन शोर मंदिर पहुंचे। बताया जाता है कि इस शोर मंदिर का निर्माण 700 से 728 ई.पू. तक हुआ था जिसे  इसे बंगाल की खाड़ी के शोर के रूप में भी जाना जाता है।
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मंदिर को देखने पर पता चलता है कि इसका निर्माण काले ग्रेनाइट से हुआ है। इस संरचनात्‍मक मंदिर  को यूनेस्‍को के द्वारा विश्‍व विरासत के रूप में वर्गीकृत किया गया है। कहा जाता है शोर मंदिर विश्व के सबसे प्राचीन पत्‍‍थर मंदिरों में से एक है जो देश के दक्षिण भाग में स्थित है।
 

अगर बात कर महाबलीपुरम से जुड़े इतिहास की तो कुछ प्रचलित मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में ये शहर इतना सुंदर था कि देवताओं को इससे जलन होने लगी। इसी ईर्ष्या के चलते सभी देवताओं ने समुद्र में तुफान भेजा जिससे यहां के समस्त मंदिर डूब गए। जिनमें से एक था शोर मंदिर। समुद्र के किनारे बसा शोर मंदिर ही विशाल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। 27 मीटर लंबे और 9 मीटर चौड़े इस परिसर मं पशु-पक्षियों की तस्वीरें के साथ-साथ दीवारों पर ग्रामीण जीवन की कलाकारी दिखाई देती है। इसके अलावा एक चित्र में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाए हुए दिखाया गया है। 

 

 

मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान शिव का एक शिवलिंग स्‍थापित है परंतु मंदिर समर्पित भगवान विष्‍णु को है। इसके अलावा इस मंदिर परिसर में देवी दुर्गा का भी एक छोटा सा मंदिर है जिसमें उनकी प्रतिमा के साथ-साथ उनके सिंह यानि शेर की मूर्ति भी स्थापित है। इस प्राचीन मंदिर के दर्शन करने न केवल हिंदू धर्मो के बल्कि अन्य कई धर्मो के लोग भी आते हैं। यहां जानें महाबलीपुरम के अन्य प्राचीन मंदिरों के बारे में-

कहा जाता है कि महाबलीपुरम मंदिरों का एक शहर है। अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर-तटों के लिए यह शहर अधिक प्रसिद्ध है। बता दें ये शहर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 55 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है। शोर मंदिर के अलावा तट मंदिर और रथ गुफा मंदिर इनमें से सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। आइए विस्तारपूर्वत जानते हैं इनके बारे में-
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तट मंदिर
महाबलीपुरम के तट मंदिर, मंदिरों में एक दम ताजा कर देने वाले त्रुटि रहित शिल्प हैं जो ग्रेंडियोज़ द्रविणियन वास्तुकला से भिन्न है। बताया जाता है इसमें सुरक्षात्मक ब्रेक वॉटर के पीछे तरंगों पर स्तंभ बनाए जाते थे। माना जाता है यहां भगवान विष्णु और शिव का निवास है।

रथ गुफा मंदिर
बताया जाता है महाबलीपुरम के इस मंदिर का निर्माण पत्थरों को काट कर किया गया है। यह मंदिर रथ के आकार में बना हुआ है जिसके भीतर भगवान शिव की महिमा के हजारों शिल्प बनाए गए हैं।
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रथ
प्रचलित किंवदंति के अनुसार महाबलीपुरम में कुल आठ रथ हैं जिनमें से पांच रथों को महाभारत के पात्र पांच पाण्डवों और द्रौपदी के नाम पर नाम प्रदान है। बता दें इन पांच रथों को धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, द्रौपदी रथ, नकुल और सहदेव रथ के नाम से जाना जाता है।

वराह गुफा मंदिर
महाबलीपुरम में स्थापित वराह गुफा मां लक्ष्मी, दुर्गा और विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है। बाहर से साधारण दिखने वाली इस गुफा के भीतर की दीवारें खूबसूरत मूर्तिकला से सुसज्जित हैं। पौराणिक  व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वराह गुफा के खंभे भगवान नरसिंह की भुजाओं पर टिके हैं।
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Jyoti

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