Pitru Paksha: 10 से 25 सितम्बर तक रहेगा श्राद्ध पक्ष, ये है पूरी List
punjabkesari.in Wednesday, Sep 07, 2022 - 08:59 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Pitru Paksha 2022: अक्सर आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है । प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्धों की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है ?
फिर जीते जी कई लोग माता-पिता को नहीं पूछते... मरणोपरांत पूजते हैं ! ऐसे कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर तर्क से देने कठिन होते हैं फिर भी उनका औचित्य अवश्य होता है।
आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा-दादी जी या नाना-नानी जी का क्या नाम है। आज के युग में अनेक बच्चे सिर खुजलाने लग जाते हैं और परदादा का नाम तो रहने ही दें। यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपका पोता भी जाने तो आप श्राद्ध के महत्व को समझें। सदियों से चली आ रही, भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परम्परा का निर्वाह अवश्य करें। श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है।
श्राद्ध आने वाली पीढ़ी को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते हैं। इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुम्ब की स्वस्थ परम्पराओं का निर्वाह करें।
ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है। ईसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है। इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है।
बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान हैं। तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्वलित करने की प्रथा है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्णपक्ष श्राद्ध के लिए तय है।
ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है इसलिए इसे ‘कनागत’ भी कहते हैं जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस्या या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं।
यह एक श्रद्धा पर्व है, भावना प्रधान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता है। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके दोनों हाथों द्वारा आवाहन करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है।
विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है। हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परम्पराएं चलती रहें। श्राद्ध कर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तु शास्त्र का भी अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं पर वे इष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते।
Why is Pitru Paksha auspicious धार्मिक मान्यताएं
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यता अनुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानी पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है।
पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाती है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
मान्यता है कि पितर रुष्ट हो जाएं तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
यह भी मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वे रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
pitru paksha 2022 calendar: वैसे तो पितृ पक्ष 15 दिन तक चलते हैं लेकिन पंचांग में ग्रह-नक्षत्रों की स्थितियों में परिवर्तन होने से ये कम या बढ़ जाते हैं। वर्ष 2022 में श्राद्ध पक्ष 15 दिन ही रहेंगे। इन दिनों श्राद्ध करने की कौन सी तिथियां आईए जानें:
पूर्णिमा श्राद्ध : 10 सितंबर 2022
प्रतिपदा श्राद्ध : 10 सितंबर 2022
द्वितीया श्राद्ध : 11 सितंबर 2022
तृतीया श्राद्ध : 12 सितंबर 2022
चतुर्थी श्राद्ध : 13 सितंबर 2022
पंचमी श्राद्ध : 14 सितंबर 2022
षष्ठी श्राद्ध : 15 सितंबर 2022
सप्तमी श्राद्ध : 16 सितंबर 2022
अष्टमी श्राद्ध: 18 सितंबर 2022
नवमी श्राद्ध : 19 सितंबर 2022
दशमी श्राद्ध : 20 सितंबर 2022
एकादशी श्राद्ध : 21 सितंबर 2022
द्वादशी श्राद्ध: 22 सितंबर 2022
त्रयोदशी श्राद्ध : 23 सितंबर 2022
चतुर्दशी श्राद्ध: 24 सितंबर 2022
अमावस्या श्राद्ध: 25 सितंबर 2022