Pahari marriage rituals: ये है दिलचस्प ‘विवाह संस्कार’, जो आधुनिक युग में भी निभाया जा रहा है

punjabkesari.in Friday, Feb 10, 2023 - 08:40 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Himachali Wedding Rituals of Himachal Pradesh: भारतीय संस्कृति में 16 संस्कारों का वर्णन है। इन 16 संस्कारों में से विवाह संस्कार सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र माना जाता है। इस संस्कार से दो भिन्न व्यक्ति जीवन भर के लिए प्रेम और अपनेपन के बंधन में बंध जाते हैं। दो परिवार निकट संबंधी बन जाते हैं। वंश बेल में वृद्धि होती है, निकट संबंधियों के जुड़ते जाने का सिलसिला चलता जाता है।

PunjabKesari Pahari marriage rituals

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

Himachali wedding rituals विवाह के विभिन्न स्वरूप
हमारे देश में विवाह संस्कार के बिना गृहस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विवाह संस्कार तो जीवन का अनिवार्य अंग अथवा प्रथा ही नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन की पहली शर्त है परंतु विवाह के प्रकार, रूप, स्वरूप इत्यादि हर स्थान, क्षेत्र, राज्य, जाति में भिन्न-भिन्न हैं।

यदि हम हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में चर्चा करें तो कुछ जिलों विशेषकर कुल्लू, मंडी, लाहौल स्पीति जैसे जिलों में जब किसी लड़की का विवाह होता है तो सामान्यत: वर किसी दूसरे गांव अथवा दूर के स्थान का होता है। वधू ब्याह कर नए घर, परिवार, नए गांव, नए परिवेश में पदार्पण करती है।

उसे अपने माता-पिता, भाई-बहनों की याद आना बहुत स्वाभाविक है लेकिन ससुराल से मायके का गांव दूर होने के कारण अपने मां -बाप के घर यानी मायके जल्दी-जल्दी नहीं जा पाती, बस मन मसोस कर रह जाती है। वधू को इस भावनात्मक स्थिति में नहीं पड़ने देने के विचार से विवाह के समय ही वर के गांव से किसी नवयुवक को वधू का धर्म भाई बनाया जाता है। स्थानीय बोली से इसे भाईडा पाना कहा जाता है। धर्म भाई बनाने के पीछे प्रयोजन यही होता था कि नए गांव यानी ससुराल के गांव में भी उसे मायके जैसा घर-परिवार, भाई-बहन जैसा माहौल और स्नेह मिले।

पूरे कुल्लू, लाहुल-स्पीति तथा मंडी जिले के कुछ भागों में यह प्रथा पूरी गंभीरता से आज भी प्रचलित है। हालांकि आधुनिक समय में कहीं भी आना-जाना चाहे, बेशक वह गांव या स्थान कितना भी दूर क्यों न हो, बहुत आसान है, फिर भी भाईडा का सगे भाई से भी बढ़कर मान-सम्मान आदर सत्कार किया जाता है। इसी प्रकार धर्म बहणि का भी बहुत आदर, खातिरदारी की जाती है।
लाहुल घाटी के बौद्ध परिवारों में बगट्रिप बनाने की प्रथा है। बगट्रिप अर्थात वधू का धर्म भाई बनना-बनाना। विवाह के दौरान बगट्रिप भी अच्छी तरह सजता-संवरता है।

PunjabKesari Pahari marriage rituals

उसे भी गुलाबी रंग की पगड़ी पहनाई जाती है। उसके दाएं हाथ में एक मोटी सी चमकदार डंडानुमा छड़ी रहती है। छड़ी के अगले सिरे पर सफेद रंग का कपड़ा बंधा रहता है। जब वधू को ससुराल के लिए प्रस्थान हेतु तैयार करते हैं तो धर्म भाई उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाता है और कमरे से बाहर लाता है।

बारात में धर्म भाई, वर-वधू के साथ-साथ ही चलता है। उसके हाथ में झक्क सफेद मलमली कपड़े से बंधी छड़ी को देख, सभी समझ जाते हैं कि यह वधू का धर्म भाई है। वर-वधू की तरह ही धर्म भाई की भी खूब आवभगत की जाती है। जब वह वर-वधू के साथ बैठता, रुकता, ठहरता है तो साथ ही छड़ी अथवा डंडे को अनाज से भरे किसी गहरे बर्तन अथवा पात्र में अन्न अनाज के बीच में गाड़ कर सीधा खड़े करके रखता है। कपड़ा बांध सिरा ऊपर की ओर रहता है। अनाज अथवा अन्नम में चावल या गेहूं होता है।

बुजुर्गों की भूमिका
वर के साथ एक और बुजुर्ग जो आमतौर पर उसके खानदान, कुटुम्ब से ही होता है, रहता है। एक प्रकार से वह वर का अंगरक्षक, पथ प्रदर्शक जैसा होता है। उसे शिरदार कहा जाता है। बगट्रिप बनाने की प्रथा/परम्परा नहीं है लेकिन वर के साथ शिरदार इनमें भी होता है।

शिरदार को भी गुलाबी अथवा सफेद रंग की पगड़ी पहनाई जाती है, जिस पर गेंदे के सूखे फूलों की लड़िया जिसे झोलड़ू कहते हैं, सजाई जाती हैं। बारात में शिरदार वर-वधू से आगे-आगे चलता है।

PunjabKesari Pahari marriage rituals

कुल्लू-मंडी जिलों में विवाह संस्कार के दौरान दाडू पूजन के बारे जानना बड़ा दिलचस्प है। विवाह के पश्चात वधू जब वर के घर में प्रवेश करती है तो गांव के किसी खेत में मौजूद दाडू यानी दाडिम अर्थात अनार के पेड़ की पूजा की जाती है। वर वधू द्वारा दाडिम के पेड़ के गिर्द फेरे यानी परिक्रमा की जाती है।

वधू के घर में जिस प्रकार विवाह मंडप में अग्नि के गिर्द सात बार परिक्रमा की जाती है, लेकिन दाडू के पेड़ के गिर्द केवल एक बार ही परिक्रमा की जाती है। यदि आसपास कहीं दाडू का पेड़ न हो तो कहीं से पहले ही दाडिम के पेड़ की डाल लाकर रख देते हैं। डाली को खड़ा कर उसी की पूजा और परिक्रमा की जाती है जबकि देश के अधिकांश भागों में पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने की परम्परा प्रचलित है। दाडू पूजन का मुख्य उद्देश्य अर्थात परम्परा यह है कि दाडिम के पेड़ को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा की जाती है कि वधू अब इस घर की सदस्य बन गई है। वधू को गृहलक्ष्मी के रूप में मानकर उसे घर की सारी जिम्मेदारी सौंपी जाती है। कहीं-कहीं दूसरे फलदार पेड़ों की पूजा परिक्रमा भी की जाती है। आशय यही होता है कि उनकी गृहस्थी भी फल वाले पेड़ की भांति पुष्पित-पल्लकवित हो, फूले फले और वंश में वृद्धि हो।    

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News