क्यों बोझ लगते हैं अपने ही माता-पिता
punjabkesari.in Thursday, Aug 01, 2024 - 09:06 AM (IST)
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Old Age and Loneliness: वृद्धावस्था जिंदगी का एक ऐसा अंतिम पड़ाव है जिसमें मनुष्य को सिर्फ प्यार चाहिए होता है। बुजुर्गों को केवल अपने बच्चों का साथ चाहिए होता है पर क्या असल में ऐसा हो पाता है? यह सवाल कोई व्यक्तिगत नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक प्रश्न है जिसका उत्तर नई पीढ़ी को देना होगा।
क्यों बोझ लगते हैं अपने ही माता-पिता
आखिर क्यों हमें अपने ही माता-पिता और बुजुर्ग एक समय के बाद बोझ लगने लगते हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि वे हमारी आधुनिकता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते या फिर उनकी और हमारी सोच मेल नहीं खाती। ऐसे तमाम प्रश्न अनायास ही मन में आने लगते हैं। आजकल बुजुर्गों की ऐसी दयनीय स्थिति है कि आज वे घर के एक कोने में पड़ा रहते हैं या वृद्धाश्रम भेज दिए जाते हैं।
बढ़ रही है बुजुर्गों की आबादी
देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़ती जा रही है। ऐसे बुजुर्ग भी बहुतायत में हैं जो जीवनसाथी की मृत्यु, उसके अलगाव या बच्चों के कहीं दूर चले जाने के कारण अकेले रह गए हैं। इनकी संख्या डेढ़ करोड़ के आसपास है।
अकेलापन है एक बड़ी समस्या
अकेलापन इनकी बड़ी समस्या है। इनकी बात सुनने बात करने के लिए किसी के पास समय नहीं है।
बहुत से बुजुर्ग आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हैं मगर सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होता, जब तक कि जीवन में किसी का सहारा न हो।
अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्गों की खबरें भी प्राय: प्रकाश में आती रहती हैं। लखनऊ के 83 साल के बुजुर्ग आर.सी. केसरवानी अपने घर में अकेले ही रहते हैं, वह डायबिटीज, ब्लडप्रैशर की बीमारी से जूझ रहे हैं। बुजुर्ग का बेटा और बहू अमरीका में रह रहे हैं।
लाकडाऊन के दौरान जब केसरवानी का ब्लडप्रैशर लो हुआ तो उन्होंने लखनऊ की पुलिस से मदद मांगी। कॉल मिलते ही पुलिस अफसर बुजुर्ग के पास पहुंचे और उन्हें मदद दी।
इतना ही नहीं पुलिस अफसर उनके लिए मिठाई लेकर पहुंचे और अपने हाथों से उन्हें मिठाई भी खिलाई।
बढ़ रही हैं बुजुर्गों से अन्याय की घटनाएं
पिछले वर्ष जुलाई में एक शर्मनाक मामला यू.पी. के फर्रुखाबाद जनपद के सामने आया था। यहां सेना के रिटायर्ड वरिष्ठ नागरिक राजकुमार अपनी पत्नी और बेटे-बहू के साथ रहते हैं। कभी सेना में दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले राजकुमार आज अपने ही बेटे से हारे हुए हैं।
उनके और उनकी पत्नी पर बेटा और बहू न सिर्फ अत्याचार करते हैं बल्कि उनका खरीदा हुआ मकान भी अपने नाम करा चुके हैं। सारा बैंक बैलेंस भी ले लिया है और अब उन्हें अपने ही घर से निकालने की धमकी दे रहे हैं।
ये चंद उदाहरण हैं जो समाज में बुजुर्गों के प्रति तेजी से बदलती सोच की कहानी बयां करते हैं। ऐसे तमाम किस्से हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं और ऐसे मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।
घरेलू हिंसा, वैचारिक मतभेद और फिर संपत्ति विवाद को ध्यान में रखकर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कई अहम फैसले लिए जो बुजुर्गों के हित में हैं।
सवाल यह खड़ा होता है कि आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग क्यों अपने रिश्तों की अहमियत खोते जा रहे हैं और चंद रुपयों के लालच में अपने माता-पिता तक की जान के दुश्मन बन जाते हैं ?