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punjabkesari.in Tuesday, May 22, 2018 - 01:31 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा

विदर्भ देश में भीष्मक नाम के एक राजा शासन करते थे। उनकी पुत्री का नाम दमयंती था। दमयंती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उन्हीं दिनों निषध देश में वीरसेन के पुत्र नल राज करते थे। वह बड़े ही गुणवान, सत्यवादी  तथा ब्राह्मण-भक्त थे। निषध देश से जो लोग विदर्भ देश में आते थे, वे महाराज नल के गुणों की बड़ी प्रशंसा करते थे। यह प्रशंसा दमयंती के कानों तक भी पहुंचती थी। इसी तरह विदर्भ देश से आने वाले लोग राजकुमारी के रूप और गुणों की चर्चा महाराज नल के समक्ष करते। इसका परिणाम यह हुआ कि नल और दमयंती एक-दूसरे के प्रति आकृष्ट होते गए।

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दमयंती का स्वयंवर हुआ। उसने स्वयंवर में बड़े-बड़े देवताओं और राजाओं को छोड़कर राजा नल का ही वरण किया। नवदम्पति को देवताओं  का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। दमयंती निषध नरेश राजा नल की महारानी बनी। दोनों बड़े सुख से समय बिताने लगे। दमयंती पतिव्रताओं में शिरोमणि थी। अभिमान तो उसे छू भी न सका था। समयानुसार दमयंती के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। दोनों बच्चे माता-पिता के अनुरूप ही सुंदर रूप और गुणों से सम्पन्न थे।


समय सदा एक-सा नहीं रहता। दुख-सुख का चक्र निरंतर चलता ही रहता है। वैसे तो महाराज नल गुणवान, धर्मात्मा तथा पुण्य श्लोक थे किन्तु उनमें एक दोष था-जुए का व्यसन। नल के एक भाई का नाम पुष्कर था। वह नल से अलग रहता था। उसने उन्हें जुए के लिए आमंत्रित किया। खेल आरंभ हुआ। भाग्य प्रतिकूल था। नल हारने लगे। सोना, चांदी, रथ, वाहन, राजपाट सब हाथ से निकल गया। महारानी दमयंती ने प्रतिकूल समय जानकर अपने दोनों बच्चों को विदर्भ देश की राजधानी कुंडिनपुर भेज दिया।

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इधर नल जुए में अपना सर्वस्व हार गए। उन्होंने अपने शरीर के सारे वस्त्राभूषण उतार दिए। केवल एक वस्त्र पहनकर नगर से बाहर निकले।  दमयंती ने भी मात्र एक साड़ी में पति का अनुसरण किया। 


एक दिन राजा नल ने सोने के पंख वाले कुछ पक्षी देखे। राजा नल ने सोचा, यदि इन्हें पकड़ लिया जाए तो इनको बेचकर निर्वाह करने के लिए कुछ धन कमाया जा सकता है। ऐसा विचार कर उन्होंने अपने पहनने का वस्त्र खोल कर पक्षियों पर फैंका। पक्षी वह वस्त्र लेकर उड़ गए। अब राजा नल के पास तन ढंकने के लिए भी कोई वस्त्र नहीं रह गया। नल अपनी अपेक्षा दमयंती के दुख से अधिक व्याकुल थे। एक दिन दोनों जंगल में एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाए पड़े थे। दमयंती को थकावट के कारण नींद आ गई। राजा नल ने सोचा, दमयंती को मेरे कारण बड़ा दुख सहन करना पड़ रहा है। यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चल दूं तो यह किसी तरह अपने पिता के पास पहुंच जाएगी। यह विचार कर उन्होंने तलवार से उसकी आधी साड़ी को काट लिया और उसी से अपना तन ढंक कर तथा दमयंती को उसी अवस्था में छोड़कर चल दिए। जब दमयंती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेली पाकर करूण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह अचानक एक अजगर के पास चली गई और अजगर उसे निगलने लगा। दमयंती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचाया किन्तु वह व्याध स्वभाव से दुष्ट था। उसने दमयंती के सौंदर्य पर मुग्ध होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा। दमयंती उसे शाप देते हुए बोली, ‘‘यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़ कर किसी अन्य पुरुष का चिंतन न किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अंत हो जाए।’’

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दमयंती की बात पूरी होते ही व्याध के प्राण-पखेरू उड़ गए। दैवयोग से भटकते हुए दमयंती एक दिन चेदि नरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुंच गई। अंतत: दमयंती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के दुखों का भी अंत हुआ। दोनों का पुनर्मिलन हुआ और राजा नल को उनका राज्य भी वापस मिल गया।

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Niyati Bhandari

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