नवरात्रि 2019: कलश स्थापना के समय करें देवी के इन मंत्रों का जाप

punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2019 - 04:05 PM (IST)

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जैसे कि आप सब जानते ही होंगे कि 28 सितंबर को पितृ पक्ष के समाप्त होते ही नवरात्रि का प्रारंभ हो जाएंगे। यानि 29 सितंबर से इस साल के शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाएंगे। हिंदू धर्म में नवरात्रि के नौ दिनों के बहुत ही खास माना जाता है। इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का खासा विधान होने के चलते हर कोई माता रानी के विभिन्न नौ रूपों की आराधना होती है। इसके अलावा नवरात्रि के नवरात्रि में घटस्थापना न कलश स्थापना का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार ये नवरात्रि के पहले दिन किया जाता बल्कि इसी परपंरा से नवरात्रों का आंरभ होता है। हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है। और अब इतना तो सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में हर तरह के धार्मिक कार्य की शुरुआत गणेश वंदना व गणेश पूजा के साथ ही होती है।
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तो आइए अब जानते हैं घट स्थपान के नियम और विधि-  
धार्मिक मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार नवरात्रों में घर में कलश स्थापना के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर-पूर्व को माना जाता है। पर ध्यान रहे इस जगह कलश स्थापना करने से पूर्व इसे अच्छे से साफ़-सुथरा कर लें। सबसे पहले घट स्थापना वाले स्थान को गंगा जल से स्वच्छ कर लें फिर ज़मीन पर साफ़ मिट्टी बिछाकर उस मिट्टी पर जौ बिछा दें। इसके बाद फिर से उसके ऊपर साफ मिट्टी की परत बिछाएं और उस मिट्टी के ऊपर जल छिड़कें। अब इसके ऊपर कलश स्थापना करें।

गले तक कलश को शुद्ध जल से भरकर इसमें एक सिक्का डाल दें। ध्यान रहे कलश के जल में गंगा जल अवश्य मिलाएं। संभव हो तो इसमें कुछ अन्य पवित्र नदियों का जल कलश के जल में मिलाएं। इसके बाद कलश पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

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अगर मंत्र न पढ़ पाएं तो बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों का तथा वरूण देवता का ध्यान कर सकते हैं।

फिर कलश के मुख पर कलावा बांधे और फिर एक कटोरी से कलश को ढक दें। इसके बाद ढकी गई कटोरी में जौ भरिए। एक नारियल ले उसे लाल कपड़े से लपेटकर कलावें से बाध दें। आख़िर में नारियल को जौ से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर दें।

निम्न मंत्र के साथ पूजा का संकल्प करें-
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।

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Jyoti

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