मान्यता: हिंदू ही नहीं मुस्लिमों के भी प्रिय हैं कन्हा

punjabkesari.in Saturday, Aug 24, 2019 - 02:25 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
पूरी दुनिया में धर्म की आड़ में छिप पर मज़हबों के नाम पर कट्टरता फैलाने वाली की कोई कमी नहीं है। इसमें ऐसे कई देशों के नाम शामिल है जो मज़हब को अपना हथियार बना कर इस्तेमाल करते हैं और लोगों में आपसी मतभेद पैदा करते हैं। लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी किस्से प्रचलित हैं जो शायद आपकी हैरानी का विषेय बन सकते हैं। आज हम जन्माष्टमी के इस खास मौके पर हम आपको हिंदू मुस्लिम के बीच भाईचारा पैदा कर देने वाले ही कुछ तथ्य बताने जा रहे हैं।

कहते हैं ऊपर वाले ने सिर्फ इंसान बनाया, धर्म, जाति आदि सब हमारे यानि इंसान द्वारा निर्मित ही हैं। हिंदू व मुस्लिम दो ऐसे धर्म जिनमें बहुत पहले से एक अनोखी जंग छिड़ी हुई है। जो असल में क्यों व किस चीज़ को लेकर वो शायद खुद भी नहीं जानते। मगर आज आपको इनके बीच की छिड़ी किसी जंग के बारे में भी नहीं श्री कृष्ण से जुड़ी ऐसे दिलचस्प किस्से बताएंगे जिसमें न केवल उनके हिंदू भक्तों के का वर्णन किया गया है बल्कि इसमें इनके मुस्लिम भक्तों का भी उल्लेख किया गया है। हम जानते हैं आपको शायद ये जानकर यकीन नहीं होगा मगर ये सच है। जिसका परिणाम हैं शास्त्रों में वर्णित इन लोगों के नाम। तो आइए जानते हैं क्या हैं ये नाम जिन्हें देशभर में कृष्ण भक्त के नाम से जाना जाता है- 
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सैयद इब्राहिम उर्फ रसखान
यूं तो भगवान श्री कृष्‍ण के कितन भक्त हैं मगर इसमें से एक थे रसखान जिन्हें उनके परम भक्तों में से एक माना जाता है। बता दें इनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, यानि ये मुस्लिम थे। भगवान कृष्‍ण के प्रति उनका लगाव और उनकी रचनाओं ने उन्‍हें रसखान नाम दिया। रसखान का अर्थात रस की खान।
कहते हैं रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था।

बता दें मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन, श्री कृष्ण के परम भक्त रसखान की ही देन है।  

अमीर खुसरो
कहते हैं 11वीं शताब्दी के बाद भारत में इस्लाम बहुत तेज़ी से फैला। मगर यहां इस्लाम श्री कृष्ण के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया। जिसकी सटीक उदाहरण है अमीर खुसरो। लोक मान्यताओं के अनुसार  एक बार निजामुद्दीन औलिया के सपने में भगवान श्री कृष्‍ण आए। जिसके बाद औलिया ने अमीर खुसरो से कृष्ण की स्तुति में कुछ लिखने को कहा तो खुसरो ने मशहूर रंग ‘छाप तिलक सब छीनी रे से मोसे नैना मिलायके’ कृष्ण को समर्पित कर दिया था।
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आलम शेख
बताया जाता है रीति काल के कवि आलम शेख़ ने ‘आलम केलि’, स्याम स्नेही’ और माधवानल-काम-कंदला’ नाम के ग्रंथ लिखे।

‘हिंदी साहित्य के इतिहास’ में रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि आलम हिंदू थे जो मुसलमान बन गए थे। उन्‍होंने भगवान कृष्‍ण की बाल लीलाओं को अपनी रचनाओं में उतारा था। उनकी प्रमुख रचना ‘पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि,गोद लै लै ललना करति मोद गान है।

उमर अलीयह
ये भी बंगाल के प्राचीन श्रीकृष्‍ण भक्‍त कवियों में से एक हैं जिनकी रचनाओं में श्री कृष्‍ण में समाए हुए राधा जी के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया गया है। इन्‍होंने बंगाल में वैष्‍णव पदावली की भी रचना की है।

नशीर मामूद
नशीर मामूद भी बंगाल से हैं, इन्हें जो पद मिला है वह गौचारण लीला का वर्णन करता है जो रस से पूर्ण है। इसमें श्रीकृष्‍ण और बलराम मुरली बजाते हुए गायों के साथ खेल रहे हैं। इनकी रचना इस प्रकार है धेनु संग गांठ रंगे, खेलत राम सुंदर श्‍याम।

नवाब वाजिद अली शाह
कहा जाता है फैजाबाद से निकले और लखनऊ में आकर बसे नवाबों के आख़िरी वारिस वाजिद अली शाह कृष्‍ण के दीवाने थे। 1843 में वाजिद अली शाह ने राधा-कृष्ण पर एक नाटक करवाया था। बताया जाता है लखनऊ के इतिहास की जानकार रोजी लेवेलिन जोंस ‘द लास्ट किंग ऑफ़ इंडिया’ में लिखती हैं कि ये पहले मुसलमान राजा (नवाब) हुए जिन्होंने राधा-कृष्ण के नाटक का निर्देशन किया था। लोक मान्यता है कि वाजिद के कई नामों में से एक नाम ‘कन्हैया’ भी था।
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सालबेग की मजार
अगर आप लोगों को पता हो तो जगन्‍नाथुपरी की यात्रा के दौरान रथ एक मुस्लिम संत की मजार पर रुकने के बाद ही आगे बढ़ता है। जो मुस्लिम संत थे सालबेग। सालबेग इस्लाम धर्म को मानते थे। क्योंकि उनकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे। सालबेग मुगल सेना में भर्ती हो गए।

एक बार इनके माथे पर चोट लग गई जिसका घाव बहुत बड़ा हो गया। कई हकीमों और वैद्यों से इलाज करवाने के बाद भी ज़ख्म ठीक नहीं हुआ। तब उनकी माता ने उसे भगवान जगन्नाथ जी की भक्ति करने की सलाह दी। जिसके बाद वह रात-दिन ईश्‍वर की भक्ति में रहने लगे।

जिसके बाद सपने में स्‍वयं जगन्‍नाथ जी ने आकर उन्हें भभूत दी। सपने में उस भभूत को माथे पर लगाते ही उनका सपना टूट जाता है। जब उठकर उन्होंने देखा है कि उसका घाव वाकई में सही हो गया। कहते हैं इनकी मृत्‍यु के बाद यहां उस स्‍थान पर उसकी मजार बनी है जहां हर साल यात्रा के वक्‍त जग्‍गनाथ जी का रथ रुकता है।
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Jyoti

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