Muni Shri Tarun Sagar: अपना किया हुआ और अपना दिया हुआ ही काम आता है ?

punjabkesari.in Monday, Mar 17, 2025 - 12:37 PM (IST)

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फूल जैसा हो जीवन
तुम भगवान के चरणों में फूल चढ़ाने जाओ तो इस चक्कर में मत पड़ना कि कौन-सा फूल चढ़ाऊं। गुलाब का फूल चढ़ाऊं या चमेली का चढ़ाऊं? बस कोई भी फूल लेना और चढ़ा देना। दरअसल फूल चढ़ाते समय केवल इतना ही विचार करना कि आदमी का जीवन फूल जैसा होना चाहिए।

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जीवन फूल जैसा कोमल होगा तो भगवान के चरणों और गले में भी जगह मिल सकती है। इतना ही नहीं, भगवान अपने सिर पर भी स्थान दे सकते हैं। बशर्ते कि हम फूल जैसे कोमल, सुंदर और सुगंधित बनें।

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आपका नजरिया कैसा है
दो मित्र बातें कर रहे थे। एक बोला, ‘‘कैसा कलयुग है, चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा है। दो काली रातों के बीच केवल एक उजला दिन आता है।’’

दूसरे ने कहा ,‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है। दो उजले दिनों के बीच केवल एक ही तो अंधेरी रात आती है।’’

परिस्थितियां एक जैसी ही हैं मगर दोनों के नजरिए में फर्क है। आपका नजरिया कैसा है?

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बोल चाल बंद मत करना
भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पिट जाना-पीट देना, मगर बोल-चाल बंद मत करना क्योंकि बोल-चाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। गुस्सा बुरा नहीं है। गुस्से के बाद आदमी जो वैर पाल लेता है, वह बुरा है। गुस्सा तो बच्चे भी करते हैं मगर बच्चे वैर नहीं पालते। वे इधर लड़ते-झगड़ते हैं और उधर अगले ही क्षण फिर एक हो जाते हैं। कितना अच्छा रहे कि हर कोई बच्चा ही रहे।

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मृत्यु की ‘क्यू’
मौत दो बातों पर हंसती है। एक तो तब जब डाक्टर मरीज को कहता है कि तुम निश्चित रहो। मैं हूं न। और दूसरी तब जब किसी के मरने पर आदमी कहता है, ‘‘बेचारा चल बसा।’’

बेचारा चल बसा-यह बात कहने वाला इस अंदाज में कहता है जैसे वह कभी नहीं मरेगा। मौत उसके इस अंदाज पर हंसती है और कहती है ‘‘ठीक है बच्चू! तूने उसको ‘बेचारा’ कहा तो अब तेरा ही नंबर है। यहां कौन है? जो मृत्यु की ‘क्यू’ में न खड़ा हो?

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पृथ्वी का सबसे बड़ा शिक्षालय
बुजुर्गों की संगति करो क्योंकि बुजुर्गों के चेहरे पर एक-एक झुर्री पर हजार-हजार अनुभव लिखे होते हैं। उनके कांपते हुए हाथ, हिलती हुई गर्दन, लड़खड़ाते हुए कदम और मुरझाया हुआ चेहरा संदेश देता है कि जो भी शुभ करना है वह आज अभी और इसी वक्त कर लो। कल कुछ नहीं कर पाओगे। बूढ़ा इंसान इस पृथ्वी का सबसे बड़ा शिक्षालय है क्योंकि उसे देखकर उगते सूरज की डूबती कहानी का बोध होता है।

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सत्कर्म जरूर करना
अपने होश-हवास में कुछ ऐसे सत्कर्म जरूर कर लेना कि मृत्यु के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को भगवान से प्रार्थना न करनी पड़े। औरों के द्वारा की गई प्रार्थनाएं तुम्हारे बिल्कुल भी काम आने वाली नहीं है। तुम्हें पता नहीं कि अपना किया हुआ और अपना दिया हुआ ही काम आता है ? आज मन की भूमि पर ऐसे बीज मत बोना कि कल उनकी फसल काटते वक्त आंसू बहाने पड़ें।

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जिंदगी की हैसियत
जिंदगी के केवल चार दिन हैं और वे चार दिन भी दो आरजू और दो इंतजार में कट जाते हैं। इससे आगे बढ़ें तो इंसान की सिर्फ दो दिन की कुल जिंदगी है और उन दो दिनों में एक दिन मौत का भी होता है। अब बचा केवल एक दिन और पता नहीं इस दिन की जिंदगी पर आदमी इतना क्यों अकड़ता है ? जिंदगी की हैसियत एक मुठ्ठी राख से ज्यादा कुछ भी नहीं है।

 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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