Muni Shri Tarun Sagar: घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो
punjabkesari.in Monday, Jul 15, 2024 - 11:32 AM (IST)
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जो बिखर गया वह मर गया
समाज अगर आज बिखरा है तो इसमें संतों का बड़ा हाथ है। बहुतेरे संत समाज को एक नहीं होने देते। अगर संत एक मंच पर आ बैठें तो समाज को एक जाजम पर बैठने में वक्त नहीं लगेगा। समाज के अलग-अलग विभाजनों को अगर हम कचरे के डिब्बे में डाल दें और सिर्फ एक होने का ‘विश्लेषण’ धारण करें तो हम दुनिया में सिरमौर हो जाएं। सच, संगठित भविष्य उसी का है। जो बिखर गया वह मर गया।
‘ठोकर’ सहकर ही आदमी मजबूत बनता है
घरवाली और किस्मत कब रूठ जाए पता नहीं। अत: घरवाली को मनाते चलो और किस्मत को बनाते चलो। किस्मत किसी कारखाने में नहीं बनती। किस्मत बनती है किए हुए शुभाशुभ कर्मों से। खोटे कर्मों से किस्मत भी ‘खोटी’ ही बनेगी और खरे (शुभ) कर्मों से किस्मत सफलता की ‘चोटी’ चढ़ेगी।
याद रखना : चोट खाकर ही आदमी चोटी पर पहुंचता है। मतलब ‘ठोकर’ सहकर ही आदमी मजबूत बनता है।
अनीति का धन नहीं पचता
महाभारत में हजारों पात्र हुए। पर उनमें से दो पात्र आज भी जिंदा हैं- दुर्योधन और दु:शासन। ये दोनों पात्र हमारे आसपास ही हैं, या यूं कहें कि हम ही हैं। अनीति का धन ही दुर्योधन है और भ्रष्टाचार का शासन ही दु:शासन है।
ध्यान रखना : अन्याय और अनीति से कमाया हुआ धन खाया तो जा सकता है लेकिन पचाया नहीं जा सकता। अनीति का धन घर में प्रवेश करता है तो दो चीजें अदृश्य हो जाती हैं नींद और भूख।
संसार में रहने की कला
मावे का व्यापारी यदि मावे में आटा मिलाए और पकड़ा जाए तो जेल जाए। व्यापारी मावे में आटा मिलाए तो दोष है और हलवाई मावे में आटा मिलाए तो संतोष है। हलवाई कलाकार है। संसार में रहने की कला आनी चाहिए। अगर हमें ढंग से ‘रहने’, ढंग से ‘कहने’ और वक्त पर ‘सहने’ की कला आ जाए तो परिवार में बल्ले-बल्ले हो जाए। आदमी दिमाग की गर्मी हटाए, जुबान में नर्मी लाए तो परिवार में स्वर्ग उतर आए।