Muni Shri Tarun Sagar: जो तुम्हारा है उसे तुमसे कोई छीन नहीं सकता
punjabkesari.in Thursday, Aug 19, 2021 - 12:22 PM (IST)
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टी.वी. का चमत्कार
आज टी.वी. ने सबको चालाक बना दिया है। कल तक जो कुली का काम करता था, आज वह स्मगलिंग का काम कर रहा है। सोचता है, इतनी भारी अटैची सिर पर ढोता हूं 10-20 रुपए मिलते हैं। ब्राऊन शुगर का छोटा-सा बैग बॉर्डर के इधर से उधर कर दूं तो 10,000 रुपए मिलते हैं और वह कुली गिरी से स्मगलिंग करने लगा।
टी.वी. से बड़े ही नहीं, बच्चे भी चालाक हो रहे हैं। एक बच्चे ने अपनी आवाज बदल कर अपने टीचर को फोन करके कहा, ‘‘आज मेरा लखन स्कूल नहीं आएगा।’’
टीचर ने उससे पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’
तो बच्चे ने उत्तर दिया, ‘‘मेरे पिता जी बोल रहे हैं।’’
जिंदगी कब्रिस्तान नहीं
जिंदगी संघर्ष का नाम है। जब तक जिओगे जिंदगी में उतार-चढ़ाव चलता ही रहेगा। जिंदगी मुंबई की चौपाटी है, जहां शोरगुल है। गांव का कब्रिस्तान नहीं, जहां एकदम शांति हो।
कुम्हार का गधा मिट्टी लेकर जाता है, सोचता है इसके बाद फ्री हो जाऊंगा लेकिन घर पहुंचता है तो उधर से बर्तन रख दिए जाते हैं कि जाओ इन्हें खेत पर छोड़कर आओ। इस तरह जिंदगी भर गधा मजदूरी करता है। इंसान भी तो यही कर रहा है।
भेड़-बकरियां और शेर का बच्चा इंसान शेर के उस बच्चे की तरह जी रहा है जो भेड़-बकरियों के बीच पल कर बड़ा हुआ और मिमियाना सीख गया। जब कभी बकरियां शेर की आवाज सुन कर डर कर भागती हैं, साथ में वह शेर का बच्चा भी भागता है। एक दिन शेर ने उस भागते हुए बच्चे को पकड़ा और पूछा, ‘‘तू तो शेर है, तू क्यों भागता है?’’
वह शेर का बच्चा तो समझ गया। ये परमात्मा के बच्चे समझ जाएं तो तरुण सागर का पसीना बहाना सार्थक हो जाएगा।
असली सुख
तर्क न करें। क्योंकि तर्क से तकरार बढ़ती है। समर्पण से सौहार्द बढ़ता है। तर्क सिर्फ उलझाता है। समर्पण समाधान देता है।
सास ने कहा, ‘‘यों।’’
बहू ने कहा, ‘‘क्यों?’’
बस यहीं से महाभारत शुरू हो जाता है। जो सुख समर्पण में है, अकड़ में कहां। जो सुख झुकने में है वह तनने में कहां! तर्क नर्क है। समर्पण स्वर्ग है। समर्पण पर जिएं।
तुम्हारे जैसा कोई नहीं
तुम्हारे सिवा तुम्हारा यहां कुछ भी नहीं है। जो तुम्हारा है उसे तुमसे कोई छीन नहीं सकता और जो तुम्हारा नहीं है, उसे किसी से छीन कर तुम्हारा बनाया नहीं जा सकता। और हां, एक बात और याद रखना, तुम केवल ‘तुम’ हो। तुम्हारे जैसा दुनिया में दूसरा कोई नहीं है। तुम्हारे अंगूठे की रेखाएं किसी से नहीं मिलतीं। तभी तो हस्ताक्षर के रूप में अंगूठा लगवाया जाता है।