कड़वे प्रवचन: टैंशन का इलाज मैडीसिन नहीं...

punjabkesari.in Thursday, Sep 24, 2020 - 08:21 AM (IST)

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संसारी और संत
आज को सफल बनाओ। कल अपने आप ही सफल हो जाएगा। जन्म को सुधारो, मृत्यु अपने आप ही सुधर जाएगी। जीवन का गणित कुछ उल्टा है। जीवन के गणित में वर्तमान को सुधारो तो भविष्य सुधरता है और जीवन को सुधारो तो मृत्यु सुधरती है। संसारी और संत में इतना ही अंतर है कि संत आज को सफल बनाने में व्यस्त है और संसारी कल को सफल बनाने में मस्त है।

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सुखी होने का फार्मूला
दुनिया में कोई भी संतुष्ट नहीं है। गरीब अमीर होना चाहते हैं। अमीर सुंदर होना चाहते हैं। कुंवारे शादी करना चाहते हैं और शादी-शुदा मरना चाहते हैं। यहां हर आदमी दुखी है। इसका कारण इतना ही है कि यहां कोई अपने जैसा होने में राजी नहीं है। हरेक आदमी दूसरे-जैसा होना चाहता है जबकि सुखी होने का फार्मूला है-तुम अपने होने में राजी हो जाओ क्योंकि तुम सिर्फ तुम हो। तुम्हारे जैसा-दुनिया में दूसरा कोई नहीं है। तुम्हारे नयन-नक्श का दूसरा आदमी नहीं है। तुम बेजोड़ हो। इसलिए तुम दूसरे-जैसा बनने की कुचेष्टा मत करो क्योंकि वह तुम कभी भी नहीं हो सकते। आखिर वह भी तो बेजोड़ है।

विश्व का भविष्य है अहिंसा
महावीर की पहचान अहिंसा से है और विश्व का भविष्य अहिंसा है। आज हिंसा और आतंकवाद से घिरी दुनिया में अमन-चैन लाने के लिए अहिंसक शक्तियों को आगे आना होगा। अहिंसा का झंडा थामने वाले लोग यह न समझें कि हम दुनिया की आबादी का मुट्ठी भर हैं, क्या कर सकते हैं? थोड़ी-सी हिम्मत और ईमानदारी से दुनिया को स्वर्ग में बदला जा सकता है, छोटी-सी चिंगारी ज्वाला बन जाती है। दुनिया में खून-खराबा बहुत हो चुका, अब अहिंसक-शक्तियां इससे निजात दिलाने आगे आएं।

चौथे बंदर की जरूरत
पर्यावरण के प्रदूषण से ज्यादा आज विचारों का प्रदूषण है। मन और चिंतन के प्रदूषण से खतरनाक और कोई प्रदूषण नहीं है। प्रदूषण का समाधान है पर्युषण। गांधीजी ने सारे देश को तीन बंदरों के प्रतीक स्वरूप संदेश दिया : ‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो।’ मैं समझता हूं, इसमें एक और बंदर को जोड़ने की जरूरत है, जो माथे पर हाथ रखकर बैठा हो और कह रहा हो-‘बुरा मत सोचो।’ आदमी का बुरा देखना, सुनना और कहना बुरा सोचने पर टिका होता है।

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दूसरे को हंसाना परम पुण्य
मैं भूखे पेट और नंगे बदन चलकर हर रोज तुम तक केवल इसलिए आता हूं कि मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मुस्कुराता हुआ देखना चाहता हूं। पूरे समाज व देश को आपसी प्रेम और विश्व शांति के पथ पर बढ़ता हुआ देखना चाहता हूं। यद्यपि मैं परमार्थ का यात्री हूं, फिर भी एक स्वार्थ मुझे तुम्हारे बीच खींच लाता है और मुझे बोलने को मजबूर करता है और वह स्वार्थ है तुम्हारी खोई हुई हंसी वापस लौटाना। मैं तुम्हें हंसना सिखाना चाहता हूं क्योंकि हंसना पुण्य है। हंसाना परम-पुण्य है।

सिर्फ माइंड अपसैट है
आज के आदमी के पास सुख और सुविधा के लिए यूं तो बहुत कुछ है। उसके पास टी.वी. सैट है, डिनर सैट है, डायमंड सैट है, सोफा सैट है, टी सैट है। सिर्फ एक ‘माइंड-अपसैट’ है, बाकी सब सैट है। आदमी का दिमाग विचारों का विश्वविद्यालय बना हुआ है और दिमाग में एक अंतहीन महाभारत मचा हुआ है। हर ओर टैंशन है। टैंशन का इलाज मैडीसिन नहीं, मैडिटेशन है।

-मुनि श्री तरुण सागर जी
 
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