Motivational Concept: बुढ़ापे का सहारा बेटा या वृद्ध आश्रम?

punjabkesari.in Sunday, Jul 10, 2022 - 01:00 PM (IST)

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शहर के नंदनवन पार्क में रोज शाम को बुजुर्गों का मेला लगता है। आज एक-दूसरे से परिचित, अपरिचित वृद्धों की बैठक हुई। सभी अपनी-अपनी व्यथा एक-दूसरे को सुना कर दिल हल्का कर रहे हैं। रमन लाल ने कहा, ‘‘जब से पेंशन पर उतरा हूं और आय कम हुई है तब से बेटे को बोझ-सा लगता हूं।’’

विनोद राय ने कहा, ‘‘मैं अपने घर में बहू को ज्यादा भटकता हूं। कभी समय पर खाना परोसती नहीं और न ही कभी मनपसंद खाना बनाती है। मेरी थाली सबके खा लेने के बाद अंत में परोसी जाती है। जो भी थाली में आता है उसे खा लेना पड़ता है।’’
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चमन लाल ने कहा, ‘‘मेरे बेटे के बंगले में सारी सुविधाएं हैं लेकिन बाहर गैरेज में मेरी खटिया बिछा दी है। एक भी सुविधा मुझे नहीं मिलती।

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’’चंद्रकांत ने कहा, ‘‘मेरा बेटा जेब खर्च के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं देता। तबीयत भी नरम-गरम रहती है। दवाई भी सरकारी दवाखाने से मुफ्त में ले आता हूं। क्या करूं- लाचार हूं, मजबूर हूं। ’’गिरधारी सिंह बोले, ‘‘जवानी मेहनत की चक्की पीसने में चली गई। जितना पैसा इकट्ठा किया था सब लड़कों ने हड़प लिया। बुढ़ापे में एक भी तीर्थ की यात्रा करने का मौका नहीं मिला।’’

इस प्रकार सभी ने अपनी-अपनी व्यथा सुनाई लेकिन गंगाप्रसाद चुप बैठे थे। विनोद राय ने उनसे कहा, ‘‘भाई, आप अपनी भी कुछ सुनाइए।

’’ गंगा प्रसाद ने जवाब दिया, ‘‘मुझे कोई तकलीफ और फरियाद नहीं है।’’

चमन लाल ने कहा, ‘‘आपका बेटा गुणवान होगा। वरना बुढ़ापे के बोझ को ढोना आज के जमाने में बहुत दुष्कर है।’’
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चंद्रकांत ने पूछा, ‘‘भाई, आप कहां रहते हैं?’’

गंगाप्रसाद ने कहा, ‘‘मैं शहर के सबसे बड़े वृद्धाश्रम ‘बेटे का घर’ में रहता हूं।’’

जवाब सुन कर सभी एक-दूसरे को देखने लगे।   


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Content Writer

Jyoti

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