महान शख्सियत थे आचार्य विनोबा

punjabkesari.in Sunday, Dec 05, 2021 - 02:16 PM (IST)

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आचार्य विनोबा भावे अपने ज्ञान और सद्विचारों के कारण समाज के हर वर्ग में बहुत लोकप्रिय थे। लोग दूर-दूर से उनसे अपनी समस्याओं के समाधान पूछने के लिए आते और हमेशा संतुष्ट होकर जाते। हर विषय पर विनोबा के विचार इतने सरल और स्पष्ट होते थे कि वह सुनने वाले के मन में सीधे उतर जाते थे। उनके शिष्यों में कई विदेशी भी थे।

एक बार आचार्य विनोबा पदयात्रा करते हुए अजमेर पहुंचे। वहां उन्हें एक अमरीकी पर्यटक मिला जो उनसे काफी प्रभावित था। उसने विनोबा के साथ कुछ दिन बिताए और उनसे कई विषयों पर चर्चा की। विदा लेते वक्त उसने कहा, ‘‘मैंने आपसे आपके देश के बारे में काफी कुछ सीखा है और अब मैं अपने देश वापस जा रहा हूं। अपने देशवासियों को मैं आपकी ओर से क्या संदेश दूं? जिससे उन्हें लाभ पहुंचे।’’

विनोबा कुछ क्षण के लिए गंभीर हो गए।

फिर बोले, ‘‘मैं क्या संदेश से सकता हूं। मैं तो बहुत छोटा आदमी हूं और आपका देश तो बहुत बड़ा है। इतने बड़े देश को कोई कैसे उपदेश दे सकता है?’’

लेकिन अमरीकी पर्यटक नहीं माना। जब उसने काफी जिद की तो विनोबा बोले, ‘‘अपने देशवासियों से कहना कि वे अपने कारखानों में साल में 365 दिन काम करके खूब हथियार बनाएं क्योंकि तु हारे हथियार कारखानों और नागरिकों को काम तो चाहिए।’’

‘‘काम नहीं होगा तो बेरोजगारी फैलेगी किंतु जितने भी हथियार बनाएं उन्हें 365वें दिन के आखिर में समुद्र में फैंक दिया जाए।’’

विनोबा जी की बात का मर्म समझ कर अमरीकी पर्यटक का सिर शर्म से झुक गया। उसने अमरीका लौट कर अहिंसा एवं निशस्त्रीकरण के कार्यों को आगे बढ़ाने में अपना जीवन समर्पित कर दिया।


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Content Writer

Jyoti

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