अद्भुत छटा बिखेरते हिमाचल के धार्मिक स्थल

Wednesday, Apr 11, 2018 - 01:34 PM (IST)

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है। पर्यटन की दृष्टि से हिमाचल एक ऐसा प्रदेश है जहां चिकित्सा पर्यटन, साहसिक पर्यटन व धार्मिक पर्यटन का असीम भंडार है। नैशनल काऊंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार भ्रमणकर्ता ऐसे स्थलों की तलाश करते हैं जहां उन्हें न केवल नैसर्गिक आनंद अपितु धार्मिक परिभ्रमण का लाभ भी मिल सके। हिमाचल के धार्मिक स्थल दुर्लभ शिल्पकारिता के अनुपम उदाहरण हैं। यहां के देवस्थल अद्भुत छटा बिखेरते हैं जो अतुलनीय हैं। यहां हिंदू मंदिर भी हैं और बौद्ध मठ भी। यहां ईसाइयों के गिरजाघर भी हैं और सिखों के गुरुद्वारे भी। 

 

यहां जानें कुछ एेेसे ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल-
ब्रजेश्वरी मंदिर: इसे 1905 के भूकंप ने नेस्तानाबूद कर दिया था जिसका 1920 में पुनर्निर्माण हुआ। 

बैजनाथ मंदिर: भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया। पालमपुर व कांगड़ा के नजदीक यह अपनी नैसर्गिक एवं कलात्मक आभा को संचरित करता है। 


ज्वालामुखी मंदिर: कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर इस मंदिर में मार्च-अप्रैल व सितंबर-अक्तूबर में मेला लगता है। नवरात्रों में इस मंदिर का विशेष आकर्षण होता है। 

चामुण्डा देवी: कांगड़ा में स्थित अति विख्यात मंदिर है जहां से बनेर खड, पथयार तथा लाहला वनों का नजारा देखा जा सकता है। 

लक्ष्मी नारायण मंदिर: जिसे शिल्पकारिता का अनूठा नमूना माना जाता है। 

चौरासी मंदिर: चम्बा घाटी के पुराने मंदिरों में से एक भरमौर में स्थित यह अद्भुत मंदिर है। एक किंवदंती के अनुसार महाराजा साहिल वर्मा की राजधानी में 84 योगी पधारे तथा उन्होंने राजा की आवभगत से खुश होकर उन्हें 10 पुत्रों और 1 पुत्री का वरदान दिया। 

चिंतपूर्णी मंदिर: ऊना कस्बे से 75 किलोमीटर दूर सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली देवी मां का यह विख्यात मंदिर है। अन्य मंदिरों में नैना देवी (बिलासपुर), मणिमहेश मंदिर जो शिखर शैली में मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है। जाखू व संकटमोचन, रेणुका, त्रिलोकपुर, बाबा बालकनाथ आदि हिमाचल के अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं। 


गिरजाघर शिमला का क्राइस्ट चर्च: यह उत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा चर्च है जिसकी मनोहारी छटा देखते ही बनती है। इसकी कांच की खिड़कियां आस्था, विश्वास, दान, धैर्य व मानवता को प्रतिबिम्बित करती हैं। इसका निर्माण 1857 में हुआ। 


कसौली का क्राइस्ट चर्च: इसका कोणीय ढांचा प्राचीन युग की याद दिलाता है। कसौली का यह गिरजाघर जिसकी नींव 1884 में रखी गई थी आज भी उतना ही अद्भुत दिखाई देता है जैसा इसे अंग्रेज छोड़ कर गए थे। 

चम्बा का गिरजाघर: चम्बा के प्रमुख बाजार में स्थित इस गिरजाघर को राजा श्याम सिंह ने बनवाया और इसे ईसाई समुदाय के प्रयोग के लिए स्कॉटलैंड मिशन चर्च को सौंप दिया। इसकी नींव 17 फरवरी, 1899 को रखी गई तथा 1905 में इसका निर्माण पूरा हुआ। 

 

सेंट एन्ड्रयू गिरजाघर: चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के नाम से विख्यात यह गिरजाघर 1905 में डल्हौजी में बना दूसरा गिरजाघर सेंट जॉन है जो गांधी चौक में स्थित है। यह डल्हौजी के बस स्टैंड से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। डल्हौजी में ही सेंट फ्रांसिस का तीसरा गिरजाघर है जो सुभाष चौक में स्थित अति प्राचीन गिरजाघर है। इसका निर्माण 1894 में फौजी अधिकारी व स्थानीय नागरिकों के आर्थिक सहयोग से हुआ। बौद्ध मठ लाहौल स्पीति व किन्नौर की सजी-धजी घाटियां बौद्ध परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के पर्वतों पर बसे हुए मठ बौद्ध कला व संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। 

 

धर्मशाला: यह एक अद्भुत तिब्बती कस्बा है जहां पूरी बौद्ध संस्कृति पोषित हो रही है। यहां श्री दलाईलामा ने अपना निष्कासन व्यतीत किया। 

रिवालसर: बौद्धों का यह सबसे पवित्र मठ है जो मंडी के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर दूर स्थित है। 

गुरु घंटाल मठ: मंडी से 4 किलोमीटर चंद्रा नदी के किनारे यह काष्ठ निर्मित पिरामिड मठ अत्यंत भव्य मठ है जहां लामा व ठाकुरों द्वारा संयुक्त उत्सव आयोजित होता है। 

 

की मठ: लाहौल स्पीति क्षेत्र के काजा के उत्तर में 12 किलोमीटर दूर भगवान बुद्ध व अन्य देवी-देवताओं की दुर्लभ चित्रकारी देखी जा सकती है। यहां घाटी का सबसे प्राचीन व बड़ा मठ है। गुरुद्वारे हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों में सिखों का आगमन 1695 में हुआ जब सिरमौर के शासक ने मुगलों से लड़ाई में उनकी सहायता मांगी थी। गुरु गोबिंद सिंह अपनी फौज के साथ पांवटा साहिब में बस गए। तभी से पांवटा साहिब सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन गया। सिरमौर जिले का यमुना नदी के किनारे स्थित यह धार्मिक स्थान सिखों के लिए अत्यंत पूजनीय है। 

 

रिवालसर: मंडी के पास रिवालसर का यह गुरुद्वारा हिन्दू व बौद्धों के लिए पवित्र है। 

 

मणिकरण: सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव के यहां आगमन की स्मृति में इसका निर्माण किया गया। बिलासपुर जिले के बसंतगढ़ कस्बे में तीन गुरुद्वारों का समूह है-आनंद कारज स्थान पातशाही दसवीं, गुरुद्वारा त्रिवेणी साहिब व गुरुद्वारा पौर साहिब। हिमाचल धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से धीरे-धीरे स्थापित हो रहा है। इसे सांस्कृतिक दृष्टि से और अधिक आकर्षक बनाने एवं आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बनाने के लिए सभी मूलभूत सुविधाओं को जुटाने की आवश्यकता है। राज्य में बौद्ध तीर्थांटन को बढ़ाने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। प्रदेश में सभी धर्मों के तीर्थ स्थानों की एक लम्बी शृंखला है।
 

Niyati Bhandari

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