संसार की बेहतरीन दवा, जिससे होता है हर रोग का इलाज

punjabkesari.in Tuesday, Dec 13, 2016 - 03:12 PM (IST)

एक स्वर्ण पात्र में भी यदा कदा पॉलिश करने की जरूरत पड़ती है। देखभाल के अभाव में इसमें जमे धूलकणों और गंदगी से इसकी चमक फीकी पड़ जाती है। इसी तरह एक अच्छे व्यक्ति को भी इस लगातार बदलती दुनिया में उचित देखभाल की जरूरत होती है। यह अवश्य ख्याल रखना चाहिए कि बदलाव अच्छे के लिए हो। परिवर्तन हमेशा उच्च मूल्यों की दृष्टि से हो। अच्छी संगति रखना विकास के लिए अनिवार्य है। बुरी संगति आत्मा के बंधनों को मजबूत करती है जबकि अच्छी संगति मुक्ति में सहायक होती है। संस्कृत में इसे सत्संग कहते हैं। 

 

जब शारीरिक या मानसिक रूप से सत्संग किया जाता है तब मन अच्छे और ऊंचे प्रभावों से ऊर्जा प्राप्त कर लेता है। यह परिवर्तन उच्चतर और बेहतर लक्ष्य की ओर चलने की प्रेरणा देता है। इसके विपरीत है ‘असत्संग’ जो कड़े से कड़े बंधन में फंसा देता है। सत्संग 2 प्रकार के होते हैं-बाह्य और आंतरिक। जैसे सबसे अच्छी दवा ईश्वर स्वयं हैं, वैसे ही सबसे अच्छा सत्संग भी खुद ईश्वर ही हैं। आंतरिक सत्संग ईश्वर का सत्संग है। यानी सारा दिन जब शरीर सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहता है तब भी ईश्वर का भाव लेते रहना चाहिए। जो आंतरिक सत्संग करता है उसे बाहरी सत्संग में भी यथा सम्भव भाग लेना चाहिए। किंतु यदि वे कभी ऐसा न कर सकें तो भी कोई हानि नहीं होगी। 


जो मात्र बाहरी सत्संग में भाग लेते हैं और मन में ईश्वर को भूले हुए हैं, उनके लिए तो बड़ी मुश्किल है। सत्संग का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पक्ष अवचेतन मन है। मन का अवचेतन भाग चेतन और अचेतन दोनों को प्रभावित करता है। अवचेतन का प्रवाह दोनों ओर है। चेतन मन की तरफ इसका प्रवाह तेज होता है और अचेतन की ओर इसका प्रवाह धीमा होता है। अवचेतन मन में 3 प्रक्रियाएं चलती हैं, स्मरण, मनन और निदिध्यासन। मुख्य रूप से निदिध्यासन अवचेतन मन के ऊपर होता है। किंतु अवचेतन इसे रास्ता देता है। 

 

स्मरण का अर्थ है याद रखना, जो बात पहले सुनी गई है उसी को स्मृति में दोहराना। मनन का अर्थ है उन चीजों का स्मरण, पुनचिंतन जो अन्य इन्द्रियों द्वारा पहले से ग्रहण की गई हैं। यह चिंतनशीलता जो स्मरण और मनन के साथ है, चेतन मन को प्रभावित करती है और इसे सक्रिय करती है। यह क्रिया अच्छी है या बुरी, यह बात निर्भर करती है पूर्व के स्मरण और मन के ऊपर पड़ी छाप के स्वभाव पर। अचेतन मन भी इससे संबंधित है। अत: सत्संग में हम कुछ ऐसा सुनते देखते हैं जो हमारी आंतरिक पसंद के अनुकूल होता है। यह पसंद व्यक्ति को उसी तरह के स्मरण, मनन और कर्म की ओर प्रेरित करती है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News